पत्ता गोभी की खेती

गोभी वर्ग की सब्जियों में बन्द गोभी (पत्ता गोभी) प्रमुख स्थान रखता है। इसमें फॉसफोरस, पोटास, लवण, फैलशियम और लोहा मिलता है। यह ठण्डी जलवायु का पौधा है। वर्षा ऋतु खत्म होते ही इसकी बुआई होती है जो मार्च तक चलती है।

  1. मिट्टी – फूल गोभी की तरह बन्द गोभी के लिए भी काली व दोमट मिट्टी अवश्यक है। बालू दोमट में यह पैदावार कम देती है। यह ठण्डी जलवायु का पौधा है। ठंड से पत्ते ज्यादा मुड़ते हैं व इसका वजन और स्वाद दोनों बढ़ते हैं। यह गर्मी सहन नहीं करता, गर्मी से इसके पत्ते खुल जाते हैं, वजन नहीं रहता व स्वाद भी नहीं होता।
  2. पौधा तैयार करना- फूल गोभी की तरह ही पत्ता गोभी की भी पौध तैयार की जाती है। इसकी पौध के लिए छोटी छोटी क्यारियां बनाकर तैयार कर लें तथा उनमें केंचुए द्वारा तैयार की गई मिट्टी डाल कर बीज छिड़क दें। बीज की मात्रा 2 किलो प्रति हैक्टर होती है क्योंकि इसकी अंकुरित क्षमता 70 प्रतिशत है। बीज क्यारियों में बोई जाती है। इसके बोने के बाद थाली या परात न फेरें, पानी दें। इस प्रकार पौध तैयार की जाती है। पौध में चिड़ियों से सावधानी रखनी पड़ती है तथा 2 से 5 दिन के अन्तराल पर पानी दें। पौधे के तीन-चार पत्ते हो जायें तो पौध की खरपतवार निकाल कर पानी दें। इसकी पौध 15 से 20 दिन में तैयार होती है।
  3. जमीन तैयार करना – एक तरफ पौध तैयार हो रही है, दूसरी तरफ इसके स्थानान्तरण के लिए हम जमीन तैयार करें। चार पांच जुताई कर के फिर गोबर की खाद 100 क्विंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से डालें। अगर कम्पोस्ट खाद तैयार है तो इसका 1/4 भाग ही खाद डाल कर जमीन पर फैला दें, फिर एक हल्की सी जोत लगाकर पाटा फेरें, इसमें जमीन में खड्डे नहीं रहें। फिर प्लेन चौरस क्यारियां बनाएं या आलू की तरह डोलियां बनाकर एक एक फुट के अन्तराल पर गोभी लगा सकते हैं या क्यारियां बनाकर भी लगा सकते हैं।
  4. पौध का स्थानान्तरण नर्सरी से पौध उठाकर उसकी जड़े एक तरफ व पत्ते एक तरफ करें व रोग नियंत्रण के लिए नीम के उबले हुए पानी को ठण्डा कर तथा उसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर इसकी जड़ धो लें व क्यारियों में एक एक फुट के फासले पर लगा दें व पानी दें। 3-4 दिन के बाद पानी देते रहें। जब नये पत्ते आना शुरू हो जायें तो खरपतवार निकालने के लिए तैयार रहना चाहिए।
  5. खरपतवार निकालना – पहले हमने नर्सरी में खरपतवार निकाली तथा स्वस्थ पेड़ों को क्यारियों में स्थानान्तरण किया। बार-बार पानी देने से इसमें भी खरपतवार होती है। उसको दो बार हल्फी खुदाई कर बाहर निकाल दें व तने के पास मिट्टी चढ़ा दें, इससे तना मजबूत होगा।
  6. पानी – फूल गोभी की तरह पत्ता गोभी में भी आवश्यकतानुसार पानी देते रहें। पहले 2-3 दिन से पानी दें, फिर 4-5 दिन से जब इसके पत्ते मुड़कर ठोस व बड़े आकार के हो जायें तो पानी प्रतिदिन भी दे सकते हैं। सर्दी में 10-15 दिन बाद पानी दें।
  7. पत्ता गोभी तोड़ने की विधि – पत्ता गोभी के पूरे पौधे को काटकर एक जगह ढेर कर दें। फिर चिपके हुए पत्तों से तैयार गांठ को काट लें, स्वच्छ पानी में धोकर रखें। अगर पत्तों पर छेद हो तो उपर से एक-दो पत्ता हटा दें तथा शेष को गाय भैंस लिए डाल दें। कटाई में देर करने पर इसके पत्ते फट जाते हैं जो बाजार के लिए उपयुक्त नहीं होते।
  8. रोग व नियंत्रण – पत्ता गोभी पर प्रायः पत्तों पर एक हरे रंग की लट लग जाती है, जो इसमें छेद करती है तथा अण्डे देकर बहुत सी लटें हो जाती हैं। ठंड से बचाने के लिए सिर्फ 2 किलो राख, 2 किलो सूखा चूना मिलाकर सुबह ओस में छिड़क दें, ऐसा 2-3 बार करें।
  9. सर्दी का प्रकोप- इस पर पाले का प्रभाव कम पडता है। गर्मी का प्रभाव ज्यादा पड़ता है। अगर गर्मी पड़ती है तो फूल फटने लग जाता है। इसका उत्पादन एक बीघा में 40 टन तक किया जा सकता है तथा कटने के बाद 10 दिन तक रोका जा सकता है।

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