फसलों को चूहों से, गिलहरियों से, दीमक या अन्य कीड़ों से बचाने के परम्परागत उपाय

मैं महात्मा गाँधी द्वारा बोले गये दो शब्द ‘सत्य और अहिंसा’ से प्रभावित हुआ। सत्य तो प्रायः हंसी मजाक या दोस्तों के साथ हंसी ठिठोली में नहीं बोली जा सकती। लेकिन दूसरे शब्द अहिंसा का मैंने पूरे जीवन भर पालन किया है। मैंने आज तक कोई हिंसा नहीं की। मनुष्य किसी भी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी या किसी भी जीव को मारने के लिए पैदा नहीं होता है, बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए होता है। जहाँ तक हो सके, हमें जीव और वनस्पति की रक्षा करना चाहिए। दोनों ही हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण अंग हैं। कोई भी वनस्पति अनुपयोगी नहीं है। अपनी-अपनी जगह सब का उपयोग है। आज हम जंगलों को काट रहे हैं, खेतों में खेजड़ी, रोहिड़ा या अन्य महत्वपूर्ण पेडों को काट रहे हैं, जिसके कुप्रभाव से ही मौसम में परिवर्तन हुआ है। पहले जब जंगलों में कई तरह के जानवर हुआ करते थे, जो प्रायः मांसाहारी थे, उनमें शेर मुख्य था। हिंसक जानवरों के कारण मनुष्य जंगल की तरफ नहीं जाता था तथा वनस्पति को नष्ट नहीं कर पाता था। पहले फोरेस्टर शेर थे, उनका भय था। लेकिन हमने हमारे स्वार्थ के वशीभूत होकर जंगली जानवरों को मार दिया। उनकी जगह आज फोरेस्टर इंसान हैं जिनका कोई भय नहीं है और हमारे जंगल कट रहे हैं। इसी कारण से मौसम परिवर्तन हो रहा है।

कृषि में कीट प्रबन्धन में भी हमने कीटनाशक रसायनों का छिड़काव कर मृदा की जैविक शक्ति में बदलाव ला दिया व इसके प्रभाव से चारों तरफ प्रदूषण फैल गया, नई नई बिमारियाँ फैल गईं। अब हमारा दायित्व है कि हम हिंसा न कर, मृदा में कीट प्रबन्धन के लिए प्राकृतिक नुस्खे हैं उनका प्रयोग करें- बदबू या खुशबू फैलायें जिससे कीट अपना स्थान छोड़ दें। अगर चूहा या गिलहरी फसल में नुकसान करते हों तो उनको जहर देकर मारें नहीं, बाजार से सड़े हुए केले लाकर उनके बारीक-बारीक टुकड़े करके दोनों या पत्तों पर बिल के पास रख दें। रात्रि में चूहे व गिलहरी उनको खायेंगे तो उनके मुंह में पेस्ट बन जायेगी, न वो उसको निगल सकते हैं और न ही बाहर निकाल सकते हैं। ऐसी स्थिति में उनको स्थान छोड़कर जाना पड़ेगा, दुबारा नहीं आयेंगे। हमारी फसल बच जायेगी।

अगर टमाटर में कीड़ा लग जाये तो उसको मारो मत, सुबह जल्दी जाकर 100 ग्राम बाजरा प्रति बीघा से छिड़काव कर दें। चिड़ियां बाजरे को खाने हेतु आयेंगी साथ में वो कीड़ों को भी खा जायेंगी। इस विधि को तीन-चार दिन लगातार करना चाहिए।

दीमक केंचुए की तरह हमारे लिए बहुत लाभदायक है। यह हमारे द्वारा जौ, गेहूँ, बाजरा आदि के काटने के बाद अवशेष बचते हैं, उनको खाकर खाद बनाती है। किसान जहाँ नमी नहीं रखता, वहाँ दीमक काटती है, इससे परेशान किसान दीमक को मारता है। दीमक को फसल से बचाने के लिए हम सफेदा, बकाण, मक्का के भुट्टे आदि को प्रयोग में ले सकते हैं। बकाण व सफेदा के डेढ़ इंच मोटी व एक हाथ लम्बी टहनियों के टुकड़े कर लें उनको 20-20 फिट दूरी पर आघा मिट्टी में डाल दें। उसमें दीमक भारी मात्रा में भर जायेगी। दीमक भरने पर उसे किसी बर्तन में इकट्ठा कर जंगल की तरफ छोड़ सकते हैं। ऐसा बार-बार करने से खेत में दीमक का प्रभाव कम हो जायेगा।

मैंने जीवन में जैविक खेती की है, जल संरक्षण किया है, पशुपालन किया है और मृदा में किसी तरह का जहर न घोला, न किसी को अपने हाथ से जहर खिलाया, न वातावरण को दूषित किया। आगे मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति की थाली से जहर निकल जाये, हर प्राणी मात्र को शुद्ध वस्तु मिले, बीमारियों से निजाद मिले।

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