बाजरा

भारत में बाजरा की खेती प्राप: मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडू में की जाती है। अफ्रीका, चीन, अमेरिका आदि देशों में भी इसकी खेती की जाती है। गुजरात व राजस्थान मे प्राय: सदी में बाजरा ही खाया जाता था। लेकिन आजकल इसका खाने में कम उपयोग होने लगा है।
- मिट्टी: बाजरे की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अधिक उपयोगी रहती है। दक्षिण भारत में जमीन फाली है, मैगूर में भी बाजरे की खेती होती है। रेत में भी अच्छी पैदावार होती है, लेकिन फसल देर से पकती है। पश्चिमी राजस्थान का बाजरा मीठा होता है।
- खाद: प्राय: बाजरे में ज्यादा खाद की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी अंतिम जुलाई के समय तैयार किया हुआ कम्पोस्ट खाद हल्का-हल्का डालकर पाटा चला है। बाजरे के लिए फेचुआं भी बहुत लाभकारी होता है। वर्षों में इसकी गति तेज हो जाती है तथा इसके द्वारा तैयार मिट्टी में नमी ज्यादा मात्रा में होती है। गर्मी में पूर्व-पश्चिम महरी जुलाई फरके छोड़ देते हैं। आंधी के साथ आई हुई मिट्टी इसके लिए उपयोगी है।
- पानी: बाजरे को समय से पानी मिले तो बाजरा गेहूं से कम नहीं होता। बुवाई के 25 दिन बाद पहला पानी खरपतवार निकाल कर तथा वर्षा अधिक हो तो 2 पानी दे। पफते समय वर्षा कम हो तो पानी दें इससे दाना मोटा होगा व चारा भी ठोस होगा।
- बुवाई का समय: बाजरे की बुवाई का समय जुलाई अगस्त है। 15 जून के याद अगर वर्षा हो जाये तो बाजरा अवश्य ही यो देना चाहिए क्योंकि बाजरे में 20 दिनों तक पानी न मिले तो फसल खराब हो जाती है।
- निराई गुहाई:- फसल बोने के 20 दिन बाद इसकी निराई-गुड़ाई का कार्य पूरा फर देना चाहिए, जिससे फसल की फुटान अच्छी हो। वर्षा के कारण घास बाद में भी ज्यादा हो जाये तो इसकी दुबारा भी खर-पतवार निकालने की आवश्यकता होती है।
- कटाई:- बाजरे की फटाई अगस्त-सितम्बर में होती है। जून की वर्षा में बोया गया बाजरा अगस्त-जुलाई या सितम्बर मास तफ पफ कर तैयार होता है। उस समय गढ़ासियों द्वारा इसकी कटाई की जाती है। पश्चिमी राजस्थान में खड़े बाजरे के सिट्टे तोड़े जाते हैं व चारे को बाद में फाटते हैं।
- बाजरा अलग निकालना:- प्रायः सिट्टों को पहले बैलों आदि से दबाकर निकाला जाता था। लेकिन आजफल प्रेसर से निकालते हैं जिससे ज्यादा समय नहीं लगता है। उस समय वर्षा आने का खतरा रहता है तथा दूसरी फसल की जल्दी रहती है। अतः लोग मशीनों द्वारा ही निकालते हैं। अनाज की कमी में पहले फूट फर भी निकालते थे।
- शेष अवशेषों का प्रयोग:- बाजरे के बाद शेष अवशेष को कड़द करते हैं। इसफा चारा दूसरे चारे से बहुत ज्यादा होता है तथा हर किसान के यहां होता है। इससे वर्ष भर चारे का काम चलता है। अगर बाजरे का चारा कम हो जाता है तो काल माना जाता है। हमारे प्रदेश में पशु प्रायः इसकी खेती पर ही ज्यादा पाले जाते हैं। बाजरे का चारा खाने वाले पशु ज्यादा दूध देते हैं।
- उत्पादन: आम खेती में बाजरा 20 से 25 किटंल प्रति हैक्टर होता है। लेकिन सिंचाई वाले क्षेत्र में 30 से 50 फिटल प्रति हैक्टर के हिसाब से इसकी पैदावार होती है। आजकल हाई ब्रीड बीज ज्यादा प्रचलन में होने से उत्पादन ज्यादा हो गया है।
- बाजार भाव :- बाजरा प्राय: वर्षा में लगाया जाता है। यह राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि में पैदा होता है। इसका उपयोग खाने, पशु आहार आदि काम में लिया जाता है। इसकी पैदावार सामान्य होने पर लगभग 1200 से 1500 रू प्रति क्विंटल व पैदावार ठीक ठाक होने पर 2000 से 2500 रू. प्रति क्विंटल होता है।
- लाभ :- इससे प्राप्त लाभ गेहूं, जो से कम होता है। फिर भी इसका चारा अधिक होने से प्राय: किसान नुकसान में नहीं रहता। इसका चारा वर्ष भर चलता है जिससे पशुपालन अच्छा हो जाता है। किसान को 30 से 40 हजार रूपये प्रति हैक्टर मिल जाता है।
- भण्डारण व्यवस्था:- इसके भण्डारण के लिए बोरियों में भरकर चारे में दबा दें जिससे चिटियाँ अन्य जिवाणु इसको नुकसान नहीं पहुंचायेंगे व लम्बे समय तक इसे रोका जा सकता है। इन्डोली के तेल का प्रयोग भी किया जा सकता है।