तिरंगे झंडे की विकास यात्रा

तिरंगा झंडा हमारे देश की शान और राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को अपने इस राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के इतिहास की पूरी जानकारी है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक इस तिरंगे के स्वरूप निर्माण में कई रोचक और क्रांतिकारी मोड़ आए। हमारे राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ के वर्तमान स्ववरूप को 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था।

भारतीय संविधान द्वारा मान्य राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की पट्टियां हैं,ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति साहस और शौर्य को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्मचक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, खुशहाली और पर्यावरण के प्रति जागरूकता के भाव को दर्शाती है।सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का चक्र है जिसमें 24 तीलियां हैं। जीवन की गति‍शीलता के सूचक इस धर्मचक्र को तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर के सिंह स्तं‍भ से लिया गया है।

जब हम तिरंगे झंडे को राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति का प्रतीक मानते हैं तो यह जानना भी बहुत जरूरी है कि हमारे इस राष्ट्रीय ध्वज के विकास के साथ स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और क्रांतिकारियों के बलिदान की अनेक कड़ियां जुड़ी हुई हैं। इसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तत्कालीन परिस्थितयों के अनुसार अनेक वैचारिक परिवर्तनों के दौर से भी गुजरना पड़ा है।महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ के विकास की कहानी स्वामी विवेकानंद और ‘वंदेमातरम् ‘ से शुरु होती है और बाद में इसके विकास के कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस तरह बदलते रहे कि कि अशोक कालीन इतिहास के साथ भी इसकी कड़ियां जुड़ती गईं ।भारतराष्ट्र की एक सुपरिभाषित अवधारणा इस राष्ट्र ध्वज से जुड़ी हैं जिसकी जानकारी से आज की युवापीढ़ी भी प्रायः अनभिज्ञ ही है। राष्ट्र ध्वज की विकास यात्रा के विभिन्न पड़ाव कौन कौन से रहे हैं,आज की युवा पीढ़ी को यह जानना भी जरूरी हैं।प्रथम ध्वज : स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का प्रतीक स्वरूप सर्व प्रथम ध्वज 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त,1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इसे फहराया गया।इस ध्वज को लाल,पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर ‘वंदेमातरम् ‘ लिखा गया था।

प्रथम ध्वज

स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का प्रतीक स्वरूप सर्व प्रथम ध्वज 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त,1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इसे फहराया गया।इस ध्वज को लाल,पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर ‘वंदेमातरम् ‘ लिखा गया था।

द्वितीय ध्वज

1907 में पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। पहले ध्वज के समान इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे।यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।

तृतीय ध्वज

1917 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन ने जब एक निश्चित मोड़ ले लिया था तब डॉ॰ एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान फहराया था। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्त ऋषियों के प्रतीक स्वरूप इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर यूनियन जैक था तथा दायीं ओर एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा अंकित थे।

चतुर्थ ध्वज

1921 में बेजवाड़ा के अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्रं की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा भी होना चाहिए।

पांचवां ध्वज

वर्ष 1931 तिरंगे के इतिहास का एक बहुत ही यादगार वर्ष है जब कराची में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली। वर्तमान राष्ट्र-ध्वज का पूर्व रूप, यह ध्वज केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था।

वर्त्तमान राष्ट्रध्वज

भारत के राष्ट्रीय ध्वज को वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था।स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्मचक्र को स्थान दिया गया। इस प्रकार अनेक परिवर्तनों के दौर से गुजरते हुए हमारे देश के तिरंगे ध्वज को अंतत: स्वतंत्र भारत के राष्ट्र-ध्वज की मान्यता मिल पाई।

भारतीय झंडा संहिता 2002

सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीयपर्व तथा महत्त्वपूर्ण अवसरों पर राष्ट्रीय ध्वज को गरिमा एवं सम्मानपूर्वक ढंग से फहराने हेतु ‘भारतीय झंडा संहिता 2002’ बनाई गई है। इस संहिता में राष्ट्रीय ध्वज फहराने, झंडे की सलामी के सही तरीके के साथ साथ गलत ढंग से झंडा फहराने, झंडे का दुरुपयोग रोकने के संबंध में भी जानकारी दी गई है।

झंडा संहिता के अनुसार महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रमों, सांस्कृतिक एवं खेलकूद के अवसरों पर आम जनता द्वारा कागज के बने झंडों को हाथ में लेकर लहराया जा सकता है, किंतु समारोह के पश्चात इन झंडों को तोड़-मरोड़ कर जमीन पर फेंका नहीं जाना चाहिए। देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना चाहिए।

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