जौ

जौ का पौधा गेहूं से बहुत मिलता-जुलता होता है। इसकी खेती संसार के सभी भागों में होती है। इसमें शीतोष्ण सहने की शक्ति ज्यादा होती है। समुद्र तल से 1600 फिट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती होती है।
- मिट्टी:- इसके लिए फाली दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। वैसे हर प्रकार की जमीन में इसे उगाया जा सकता है। परन्तु पैदावार अधिक नहीं होती तथा खर्चा एक सा होता है, जिससे किसान को अधिक मुनाफा नहीं होता। खाने के अलावा बीयर बनाने व पशु आहार में काम आता है।
- खाद: इसके लिए 60 फिटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हैक्टर के हिसाब से देनी चाहिए, कम्पोस्ट खाद उपरोक्त का 1/6 भाग होने पर भी काफी होता है। जौ की फसल में देचा, ग्वार खाद आदि की हरी खाद भी उपयुक्त रहती है।
- पानी:- जौ के बोने के 20 से 25 दिन तक पानी देना आवश्यक होता है। उस समय उसकी जड़ों में फुटान होती है तथा दूसरा पानी खरपतवार निकालने के बाद, 5-6 पानी देने पर जो की पैदावार अच्छी होती है। पकते समय जी में एक पानी कम कर दें। ज्यादा पानी देने से दाना बारीक बनता है।
- बुआई का समय:- जौ की बुआई गेहूं से पहले की जाती है। इसकी बुआई 15 अक्टूबर से पहले हो जानी चाहिए। जहां सिंचाई के साधन व पानी की मात्रा अधिक होती है तथा वातावरण ठण्डा होता है, इसकी अगली खेती करते हैं।
- निराई-गुड़ाई:- जौ की निराई, गुड़ाई गेहूं की तरह ही की जाती है। पहला पानी देने के बाद खरपतवार निकाल दी जाती है। जिससे फुटान अच्छी होती है तथा उत्पादन भी ज्यादा होता है।
- कटाई:- जौ की कटाई प्राय: होली के पास मार्च माह में गेहूं से पहले होती है, इसकी कटाई हाथ दातली से की जाती है। आजकल मशीनों की सहायता भी ली जाती है।
- जौ को अलग निकालना:- गेहूं की तरह हो जो को पहले जानवरों द्वारा घुमाकर निकाला जाता था। अब मशीनीकरण होने से मशीनों से निकाला जाता है।
- शेष अवशेषों का प्रयोग:- जी को अलग निकालने के बाद शेष चारा जानवरों के काम आता है। अगेता चारा मिलने पर पैसे भी ज्यादा मिलते हैं।
- उत्पादन:- जी का उत्पादन 60 से 70 किटंल प्रति हैक्टर के हिसाब से होता है। जहां अच्छा खाद, समय पर पानी व दुमट मिट्टी होती है अधिकतम उत्पादन 70 से 80 क्विंटल होता है।
- निर्यात – जी का निर्यात किया जाता है, जी बीयर बनाने, पशु आहार व खाने के काम आता है।
- भण्डारण व्यवस्था:- जौ को निकालकर रखना है तो इसको जो के भूसे में दबा दें जिससे हवा पास न हो। इस प्रकार जी के जानवर, कीट नहीं लगेगा तथा लम्बे समय तक खराब नहीं होता है। अगर इन्होली का तेल लगाकर खुशबू कर दे तो किटाणु खराब नहीं करते।