अमित सिवाह एवं आचार्य कर्मवीर
गुरुकुल में स्त्रियों का प्रवेश
महर्षि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाश के तृतीय समुल्लास में लिखा है- ” स्त्रियों की पाठशाला में पांच वर्ष का लड़का और पुरुषों की पाठशाला में पांच वर्ष की लड़की भी न जाने पावे । ” आचार्य श्री ने महर्षि जी की इस आज्ञापालन के लिए गुरुकुल का यह कठोर नियम बनाया कि गुरुकुल में स्त्रियों का प्रवेश निषेध है । चाहे वह पांच वर्ष की है और चाहे 95 वर्ष की । इसी से सम्बन्धित यह घटना है । एक दिन एक महिला ए.डी.सी. गुरुकुल को देखने की इच्छा लेकर गुरुकुल में प्रवेश कर गई । आचार्य श्री ने ब्रह्मचारियों को कहकर उस महिला अधिकारी को सम्मानपूर्वक वहां से जाने को कहा । इससे उस महिला अधिकारी ने अपना अपमान समझा और गुरुकुल को मिलने वाली ग्राण्ट रोक दी और कहा कि जब तक आप यह नियम नहीं बदलेंगे तब तक आपको किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं दी जायेगी । आपने उन्हें पुनः ब्रह्मचारी द्वारा पत्र लिखकर सूचित किया कि “ अगर आप गुरुकुल को सोने का भी बना दें , तब भी मैं अपने इस नियम को नहीं तोड़ सकता । “
कालवा तीर्थ पर सांग
गांव कालवा ( जीन्द ) में तीर्थ पर एक बार सांग होने लगा । आचार्य श्री को सूचना मिली तो अपने ब्रह्मचारियों को भेजकर सांग बन्द करवा दिया , जिससे पूरे गांव में तनाव का माहौल पैदा हो गया । लोग इकट्ठे होकर डी.सी. के पास गये और सांग को दोबारा शुरू करने की अपील की । लेकिन डी.सी. ने मना कर दिया । फिर इधर – उधर से प्रयास किया तो बात नहीं बनी । आखिरकार वे लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पास पहुंचे । मुख्यमंत्री जी ने आचार्य श्री से कहा कि या तो यहां सांग होने दें नहीं तो यहां बहुत सारे लोग मारे जायेंगे । तब आपने कहा कि हमारा काम बुराई का विरोध करना और बुराई को रोकना है आदमी मरवाने का नहीं । तब सांग तो हुआ लेकिन बाद में जो सांग करवाने वाले लोग थे , वे ही आचार्य श्री से बहुत प्रभावित हुए और आपसे माफी मांगी और गुरुकुल के आजीवन सहयोगी बने । फिर भविष्य में कभी सांग नहीं हुआ ।
लोभ से परे
आचार्य श्री का मन लोभ से परे था । आपके पास जो था उस पर भी कभी आपने अधिकार नहीं समझा । एक बार गुरुपूर्णमा के अवसर पर आपके शिष्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने आपको गुरुदक्षिणा में ढाई लाख रुपये का चैक दिया । उसी समय गोशाला मरोडा मेवात से वेदप्रकाश जी भी आ गये और कहने लगे गुरु जी स्वामी जी से हमारी गोशाला की भी मदद करवाओ । आपने तुरन्त वह ढाई लाख का चैक वेदप्रकाश जी को दे दिया ।
कालवा गांव का एक व्यक्ति अपने परिवार वालों से लड़ – झगड़कर दुःखी होकर एक पोटली में सोने – चांदी के गहने व पांच एकड़ जमीन की रजिस्ट्री लेकर सुबह – सुबह आचार्य श्री के पास आया । आचार्य श्री ने उसे दूध आदि पिलाया । उस व्यक्ति ने आपसे कहा – गुरुजी ये गहने और जमीन आपको देने के लिए आया हूँ , क्योंकि मेरे परिवार वाले मुझे भोजन तक नहीं देते । मुझसे लड़ाई – झगड़ा करते हैं , मगर ये जमीन और गहने मेरे स्वयं के हैं , आप इन्हें ले लीजिए । आचार्य श्री ने बड़े शान्तभाव से उससे कहा ‘ भाई जब मैंने अपनी ही जमीन अपने पास नहीं रखी तो आपकी जमीन कैसे ले सकता हूँ ? आप घर जायें । ये गहने व जमीन की रजिस्ट्री घर दे आएं । आपके भोजन और रहने की व्यवस्था यहीं गोशाला में कर देंगे । ‘
ईश्वर में अटूट विश्वास
आचार्य श्री की ईश्वर के प्रति दृढ़ आस्था थी और विश्वास भी । एक समय की घटना है । मार्च महीने की बात है । गोशाला का चारा बिलकुल समाप्त हो गया । सायंकाल का चारा डालने के बाद कर्मचारियों ने आचार्य जी को बताया कि सुबह के लिए चारा नहीं है । आपने कहा कि सब परमात्मा की व्यवस्था है और अपने कार्य में लग गये । कुछ समय बाद कर्मचारी फिर कहने लगा- -गुरुजी , परमात्मा कहां से देगा जब आपके पास न तो धन है और न ही चारा है । तब फिर आचार्य श्री ने कहा- सब ठीक हो जायेगा । जैसे ही रात होने लगी अचानक एक किदारा नाम का व्यक्ति जो कालवा गांव से था आया और आचार्य श्री से कहने लगा आचार्य श्री मैं गोशाला को कुछ तूड़ी ( भूसा ) देना चाहता हूँ । आचार्य श्री ने पूछा- किस भाव ? तो वह हाथ जोड़कर बोला- आचार्य श्री आपसे भाव नहीं , दान में दे रहा हूँ और उस सज्जन ने पूरा एक कूप भूसा उठवा दिया । अगले दिन आचार्य श्री ने प्रार्थना में कहा कि देखो भाई ईश्वर कैसे देता है । सभी कर्मचारी हैरान थे ।
महिलाओं का सम्मान
एक बार बहुअकबरपुर गांव में आर्यसमाज का उत्सव चल रहा था । विशेष आमन्त्रण के बाद आचार्य श्री भी कार्यक्रम में पहुंचे । कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने पर सभी आचार्य श्री को चरणस्पर्श करके प्रणाम करने लगे तो तभी एक छोटी बालिका ने भी आचार्य श्री के पैरों को छूआ । बालिका का पता लगते ही आचार्य श्री पीछे हटे , क्योंकि आप महिला को पैर छूने नहीं देते । आप नारी को पूज्य मानते हैं , लेकिन बालिका ने अनजाने में पैर छूकर प्रणाम किया तो आपने प्रायश्चित्त स्वरूप पूरे दिनभर खाना – पीना त्याग दिया ।
देश का सम्मान
बहुत बार गुरुकुल में आर्थिक समस्या हो जाती थी । एक बार इतना अभाव हुआ कि भोजन के लिए दाल खरीदने तक के पैसे नहीं थे । इस बात का पता जब ब्रह्मचारियों को लगा तो उनमें से एक विदेशी ब्रह्मचारी ने निवेदन किया कि मेरे पास कुछ पैसे हैं , आप इनसे खर्च चला लें तो आपने उसे स्पष्ट मना कर दिया । इसमें एक कारण तो यह था कि ब्रह्मचारी खुद ही छात्रवृत्ति मांग आवश्यकता पूरी करते हैं और दूसरा मुख्य कारण यह था कि पढ़ाई पूरी होने के बाद यह ब्रह्मचारी अपने देश जाएगा और कहेगा कि भारत इतना गरीब है कि वहां गुरुकुलों में दाल खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं ।
सपष्टवादिता
आचार्य जी सरल व स्पष्ट वक्ता थे। राजनीतिक पचड़ो से स्वयं को हमेशा दुर रखते आए। हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का शपथग्रहण समारोह के लिए खूद खट्टर साहब श्री आचार्य जी को आमंत्रित करना चाहते थे। उन्होंने फोन किया सभा के अधिकारी ने बताया की आचार्य जी की आपके लिए फोन है। आचार्य जी ने उनसे कहा की आर्य समाज का कार्यक्रम है तो बताएं अपितु मैं इन पचड़ो में नहीं पड़ता। ऐसे ही अनेक राजनेता उनको पार्टी के कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करना चाहते थे। परंतु आचार्य जी स्पष्ट वक्ता, सौम्य, सरल व्यक्तित्व के धनी थे। हरियाणा आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान रहे परंतु कभी भी प्रतिनिधि सभा में भोजन ग्रहण नहीं किया। पूछने पर कहते लोग पीछे ये कहेगें की साधु ने सभा में ही खाया। आस पास के किसी आर्य सज्जन के घर से आचार्य जी के लिए भोजन आता था। पर आज यहां टिक्कड़पाड़ो की भरमार है। न भजनोपदेशक न उपदेशक न ही आचार्य श्री जैसे त्यागी तपस्वी सन्यासी।