18/10/2025
सब सुखी हो व सब निरोगी बनें, यह तो इस ऋचा का शाब्दिक अर्थ है। भावार्थ यह है कि प्रत्येक जीव का जीवन संसार के अन्य जीवों से जुड़ा है। सभी के सुखी और निरोगी रहने पर ही हम स्वयं भी सुखी रह पाएंगे। जैविक या सजीव खेती इसी प्रकृति और पड़ौसी से सहजीवन के सिद्धांत पर आधारित है।
कृषि – सर्वोच्च समाज कार्य
कृषि कोई व्यवसाय नहीं है, यह तो प्रकृति के अमूल्य उपहार मृदा, वायु, जल के संयोजन से जीवन तत्व की निरंतर उत्पत्ति है। इनका अतिदोहन सम्पूर्ण पृथ्वी का संतुलन बिगाड़ सकता है, जैसा हरित क्रांति में हुआ है। इसीलिए “उत्तम खेती – मध्यम व्यापार – अधम चाकरी” कहकर कृषि को सर्वोच्च समाज कार्य कहा गया है, ताकि इसे जीवन उपयोगी कार्य समझकर इस प्राकृतिक उपहार की पवित्रता बनाई रखी जा सके।
साथ ही यह भी अपेक्षा की गई है कि समाज का प्रत्येक वर्ग इस पवित्र कार्य में कृषक का सहयोग करे। उत्पादन के बाद ही संतुलित व्यापार की अपेक्षा की गई है। कई पर्यावरण संरक्षक कृषि सहायक कार्यों को धर्म से जोड़ा गया ताकि सभी इन कार्यों को करें। जैसे गौसेवा, वृक्ष लगाना, तालाब बनवाना आदि।