Skip to content

पालक की प्राकृतिक खेती

यह हरे पत्तों वाली सब्जी है। इसके पत्ते लम्बे व चौड़े तथा उपर से गोलाकार होते हैं। इसमें भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं। ये वात, कफ, ज्वर नाशक होता है। पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा खून का शुद्ध करता है। वायु विकारों को दूर करता है। यह सब्जी बनाने या पूड़ी, पकोड़े व पराठे आदि बनाने में काम आता है। यह खून की कमी की पूर्ति करता है।

जमीन की तैयारी

पहले भूमि में 50 से 60 किंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से सड़ा हुआ गोबर का खाद डालकर दो-तीन बार गहरी जुताई करके फिर पाटा फेर दे, उसके बाद आवश्यकतानुसार क्यारियाँ बनाकर बीज की चुभाई तीन-चार दाने एक हैं। इसका बीज दो-तीन किलो प्रति कच्ची बीघा के हिसाब से काम में लिया जाता है।

बीज की मात्रा

पालक का बीज मोटा तथा उभरा हुआ हरे रंग का गोल होता है, जो 20 से 30 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से बोया जाता है।

पानी की मात्रा

बीज की चुभाई के तुरन्त बाद पानी दिया जाता है तथा 4-5 दिन के अन्तराल पर पानी देते रहते हैं ताकि बीज अंकुरित हो जाये।

खरपतवार नियंत्रण

अंकुरण के 12 दिन बाद खुरपी की सहायता से खरपतवार निकालकर बाहर फेंकते हैं व दो-तीन दिन की धूप के बाद पानी लगाते हैं।

तुड़ाई

20-25 दिन में पालक काटने काबिल हो जाता है। हाँसिये की मदद से जमीन से एक इंच उपर से काट कर हल्की-हल्की पुलियाँ बनाई जाती हैं। इसकी कटाई चार-पाँच बार होती है व बोने के 70-75 दिन बाद डण्ठल निकलना शुरू होता है। डण्ठल बहुत जल्दी बढ़ते हैं तथा इनके उपर शाखाएं निकलती हैं, जिनकी टहनियों के उपर पालक का बीज आना शुरू होता है। बीज सूखने पर पौधा पीला पड़ जाता है। पूर्णतया पकने पर सरसों की तरह काटकर भारे बनाते हैं तथा पूरा सूखने पर डण्डे की सहायता से झाड़कर बीज तैयार करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *