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कैर की खेती

कैर एक जंगली पेड़ है। यह प्राय: उन स्थानों पर पाया जाता है जहाँ की मिट्टी कठोर हो व जमीन जोत के काम आने काबिल न हो। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती हैं तथा डाली और तने पर उभरता हुआ कवच (छोड़ा) होता है। पश्चिमी राजस्थान में जहाँ सैकड़ों बीघा ज़मीन बंजर पड़ी हुई है तथा बरसात का पानी इकट्ठा होता है, इसके पेड़ भारी मात्रा में पाये जाते हैं। बसन्त ऋतु में इस पर गुलाबी रंग के फूल आना शुरू हो जाता है तथा फूलों के 10-15 दिन बाद गोलाकार हरे रंग के फल लगते हैं जिनका आकार मटर के दाने के बराबर होता है। उनमें बीज नहीं होता है व उससे बड़ा होने पर सारा फल बीजों से भर जाता है जो कम उपयोगी होते हैं।

गुण:- इस पेड़ के फलों में बहुत गुण हैं। यह पेट सम्बन्धी रोगों को नष्ट करता है। पहले शादी विवाह में गरीष्ठ भोजन के बाद कैर तेल में तलकर व उनपर नमक मिर्च डालकर थोड़ा थोड़ा परोसा जाता था। इस फल को स्वाँस रोग में व चर्म रोग में भी काम में लिया जाता है। घाव होने पर इसकी टहनी को दही में पीसकर मरहम बनाई जाती है जो तुरन्त घाव को भरती है। कैर को छाछ में गलाकर शुद्ध पानी से धोकर रखते हैं तथा तेल गरम करते हैं उसमें नमक, मिर्च, हल्दी, जीरा व अन्य मसाले डालकर कैर छोड़ देते हैं इस तरह इसका आचार बनाया जाता है जो 2 वर्ष तक काम में आता है। शुष्क व गर्म जलवायु का पेड़ होने पर इसके फलों की तासीर ठण्डी है।

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