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चने की खेती

चने की मुख्य उत्पत्ति का स्थान अफगानिस्तान माना जाता है। इसकी खेती संसार के अनेक देशों में की जाती है। भारत में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, बिहार में इसकी पैदावार अच्छी होती है।

  1. मिट्टी :- इसके लिए दोमट व काली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। बालू दोमट मिट्टी में भी इसकी पैदावार होती है। जहां पानी का अच्छा निकास नहीं हो वह स्थान इसके लिए उपयुक्त नहीं होता है।
  2. खाद:- इसमें खाद की आवश्यकता कम होती है। प्रायः 10 से 20 गाड़ी खाद इसमें दिया जाता है। शुष्क क्षेत्र की फसल होने के कारण इसे बिना खाद भी उगाया जाता है।
  3. सिंचाई:- इसमें पानी की आवश्यकता कम होती है। जहां खाद की मात्रा अधिक होती है, वहां एक या दो पानी में फसल तैयार होती है। बरानी भूमि में जहां पानी नहीं मिल पाता, वहां भी चने की खेती आसानी से की जाती है।
  4. बुवाई का समय:- चने की बुवाई का समय 25 सितम्बर से 30 सितम्बर तक है। जहां पानी पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है, वहां इसकी खेती अक्टूबर महिने में भी की जाती है।
  5. बीज की मात्रा :- चने की बुवाई का बीज 50 से 60 किलो प्रति हैक्टर होता है। जहां इसको जौ, गेहूं के साथ बोते हैं, वहां 25 से 30 किलो प्रति हैक्टर की मात्रा पर्याप्त होती है।     
  6. निराई, गुड़ाई:- प्रायः हर फसल की निराई व गुड़ाई की जाती है। लेकिन चने में सामान्यतः निराई व गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है और इसकी खेती में ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके पौधे की ऊपर की टहनियों को एक-दो इंच तोड़ने पर इसकी नई शाखायें बनती हैं और पौधा फैल जाता है। शुष्क क्षेत्र में पौधे के ऊपरी भाग को नहीं तोड़ा जाता, क्योंकि पानी नहीं मिलने पर पौधा पर्याप्त मात्रा में नहीं फैल पाता तथा उसका फसल पर प्रभाव पड़ता है।
  7. कटाई :- इसकी कटाई मार्च के महीने में होती है, इसके पौधे को जड़ से उखाड़ लिया जाता है और इसकी जगह-जगह छोटी छोटी ढेरियां बना दी जाती हैं। जब यह पूर्ण रूप से सूख जाता है तो इसे एक जगह इकट्ठा करके झड़ाई या कटाई के द्वारा इसको निकाला जाता है।
  8. शेष अवशेषों का उपयोग – इसका चारा गाय, भैंस आदि के योग्य ना होकर प्रायः ऊंटों को खिलाने के काम लिया जाता है। भेड़ और बकरी भी खाती है।
  9. उत्पादन:- सिंचाई क्षेत्र में इसका उत्पादन 30 से 40 क्विटंल प्रति हैक्टर होता है तथा शुष्क भूमि में 15 से 20 क्विटंल प्रति हैक्टर होता है।
  10. बाजार भाव:- इसके बाजार भाव प्रायः जौ तथा गेहूं से अधिक होता है, विदेशों की ज्यादा मांग होने पर इसके भाव 14 से 15 रूपये प्रति किलो तक भी हो जाते हैं, जो किसान के भाग्य को बदलने का फैसला करते हैं।
  11. आयात: हमारे देश में इसकी पैदावार अच्छी होने पर इसका आयात नहीं किया जाता।
  12. निर्यात:- हमारे देश में चने की फसल अच्छी होती है। स्थानीय मांग को पूरा करने के बाद इसका दूसरे देशों को निर्यात भी किया जाता है। जिससे विदेशी मुद्रा प्राप्त कर हमारे देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती है।

चना कहे मेरी दो दो डाल

रूपया पैसा का बहादू खालु।

जो धनी मन बाद वो थली छोड़ नहीं जाव

दाल बनाकर व दाल से मिठाई बनाने में चने का बहुत महत्व है।

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