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बैंगन की खेती

बैंगन लोकप्रिय सब्जी है। इसमें सभी तत्व पाये जाते हैं। इसकी वर्ष में कई फसलें ली जाती है। गर्मी में इसकी पैदावार ज्यादा होती है। बाजार में मांग भी ज्यादा रहती है। ये दो प्रकार के होते हैं। गोल अण्डाकार व लम्बे, इनका रंग बैंगनिया-नीला चमकदार होता है तथा अन्दर की परत सफेद बीजों से भरी हुई होती है।

  • भूमि तथा जलवायु – बैंगन गर्म मौसम की सब्जी है। सर्दी में उगने पर इसके पौधे को पाले से खतरा होता है। इसको काली दोमट व बालू दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • पौधे तैयार करना – इसके बीज गोल, चपटे, मिर्चनुमा भूरे रंग के हल्के होते हैं। जिनकी अंकुरण क्षमता 85 से 90 प्रतिशत होती है। 1 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से बीज़ चाहिए। पौध तैयार करने के लिए 6 गुण 4 वर्ग फुट की आवश्यकतानुसार क्यारियां तैयार करें, उसमें केंचुए द्वारा बाहर निकाली गई मिट्टी डालें व बीज छिड़क दें, बीज अंगुलियों से मिलाकर पानी दें। बीज हल्का होने से उपर तैर जाता है, जिस पर बार हल्की-हल्की मिट्टी फैंककर दबा दें व पानी देते रहें। जब पौध 10 दिन बाद उगे तो चिडियों का ध्यान रखें।
  • पौध में खरपतवार – पौध नर्सरी में डालने के 20 दिन बाद पानी देते रहने से खरपतवार हो जाती है। अत: बैंगन की पौध में खरपतवार निकालना आवश्यक है। इससे पौधों का तना मजबूत होता है।
  • जमीन तैयार करना- जुलाई-अगस्त में रोपी फसलों के लिये मई-जून में खेत की मिट्टी में हल से जुताई कर उसे धूप में तपने दें। ऐसा दो-तीन बार करने पर जमीन पोली हो जायेगी, उस पर पाटा फेर कर छोड़ दें क्योंकि पाटा नहीं फेरने में केंचुए को फौवे उड़ा ले जाते हैं। बाद में उस पर 100 किंटल प्रति हेक्टर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें, कम्पोस्ट खाद तैयार की हुई हो तो उपरोक्त का 1/4 भाग डालें, इसको जमीन पर फैलायें तथा एक बार हल से जोत दें, इस प्रकार जमीन तैयार होने पर उसमें क्यारियां बना लें।
  • पौध का स्थानान्तरण करना नर्सरी से पौध को उखाड़ कर सौ-सौ पौध की गड्डियां बना ली जाती हैं। फिर उनकी मिट्टी झाड़कर नीम की पत्तियों के रस के पानी में जड़ों को घोल कर मिट्टी साफ करें तथा 40 से.मी. की दूरी पर प्रत्येक पौध लगायें। पौध की रोपाई करते समय रोगी व कमजोर पौधे को निकाल दें, रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।
  • खरपतवार निकालना – वर्षाकालीन फसलों में अन्य फसलों की अपेक्षा खरपतवार अधिक होती है। अतः इसको प्रारम्भिक अवस्था में ही निकाल दें। वर्षाकालीन फसलों में निराई व गुड़ाई तीन-चार बार करें, सर्दकालीन फसल में दो तीन बार करें, निराई गुड़ाई के समय पौधे के तने के पास मिट्टी जरूर लगायें।
  • पानी की मात्रा पहला पानी रोपाई के तुरन्त बाद दें, फिर 2-3 दिन के अन्तराल पर पानी दें, वर्षा समय पर होने पर पानी कम दें, सर्दी में सिंचाई की अधिक जरूरत होती है। अतः 10-12 दिन के अन्तराल पर पानी दें।
  • तुडाई- पौध लगाने के 70-80 दिन बाद बैंगन लगने शुरू हो जाते हैं। जब इन पर रंग आ णजाये और फल बड़े हो जायें तो तोड़ना शुरू कर दें, तोड़ने में देरी करने से इनका रंग हल्का सफेद हो जाता है तथा फल सख्त हो जाता है। फल लगने के 4-5 दिन बाद तोड़ने लायक हो जाते हैं।
  • रोग व नियंत्रण इसमें फल छेदक, तना छेदक व पत्ते सिकुड़ने की बीमारी होती है, फल व तना छेदक होने पर तम्बाकू की मिट्टी 500 ग्राम, इसको 3 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह घोल लें, छान कर इसे एक बीघा जमीन पर छिड़क दें, तने पर पानी जाना आवश्यक है। इस तरह इसके रोग पर नियंत्रण होगा। पत्ते के सिकुड़ने पर चर्मकार के कुण्ड का पानी लाकर छिड़कने से (इसमें छाछ, बाजरे का आटा, आक का दूध, टीकर की छाल, आदि होते हैं) पत्तों के नीचे लगे शुक्ष्म किटाणु मर जाते हैं व पत्तों की सिकुड़न खत्म हो जाती है। यह छिड़काव मिर्ची व टमाटर में भी करें। नीमाटोड में गेंदे के फूल उबालकर रस निकालें व पानी में मिलाकर डालें। सर्दी में फसल में पाले का प्रकोप होता है। इससे बैंगन के पौधों को बचाने के लिए शाम के समय गाय-भैंस का सूखा गोबर, बचा हुआ चारा आदि डाल कर, उत्तरी हवाएं चलती हैं, उस समय धुआं कर दें। धुआं से पौधे पर ओस नहीं पड़ती है व सर्दी से उन पर बर्फ नहीं जमती है।

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