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अडूसा एवं गिलोय की खेती

अडूसा

ज्यादातर पहाड़ों या उनकी तलहटियों में पाया जाता है। इसका रंग हरा व पत्ते आम की तरह लम्बे होते हैं। इसमें तना जमीन के बराबर होकर बहुत सी फुटाने होती हैं। इसके पत्तों का रस बहुत लाभकारी है। इसके रस को शहद के साथ देने से पुरानी से पुरानी खाँसी से निजाद मिलती है। सर्दी-जुखाम, पेट दर्द आदि में भी इसका क्वाथ बनाकर शहद के साथ देते हैं। फोड़ा फुंसी में भी इसके रस का लेप करते हैं। वृद्धावस्था में जोड़ों के दर्द होने पर इसके पत्ते, दर्द पर गर्म करके बाँधने से आराम मिलता है।

गिलोय

गिलोय एक प्रकार की बेल होती है। इसकी बेल पर एक सफेद बारीक कवच होता है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के नागरपान के आकार के होते हैं। हमारे यहाँ औषधी में नीम-गिलोय का ज्यादा महत्व है क्योंकि इसके गुणों के अलावा नीम के गुण भी इसमें आ जाते हैं। गिलोय को ज्वर के लिए उत्तम औषधि मानते हैं। यह गर्मी को शान्त करती है। यह गर्म तासीर की है तथा स्वाद में चरचरी व कड़वी है। भूख बढ़ाने वाली है। वात, कफ, पित्त नाशक है, पुरानी खॉसी, बवासीर, चर्मरोग, अम्लपित्त, उदर विकार, मधुमेह, क्षयरोग आदि में गुणकारी है। क्षयरोग को जड़ से खत्म करती है। यह औषध एण्टी बायोटिक का काम करती है।

बोने की विधि :- गिलोय की बेल के ढाई से तीन फिट के टुकड़े करते हैं तथा उनको नीम की जड़ों से एक डेढ़ फिट की दूरी पर एक फिट गड्डा खोदकर उसमें खाद मिलाकर छ: इंच बेल को गड्डे में डालकर मिट्टी डालकर पानी भर देते हैं। बेल के उपरी हिस्से को रस्सी से बांधकर पेड़ के तने के लगा देते हैं। बहुत जल्दी ही यह बेल पेड़ पर चढ़ जाती है व पेड़ को पत्तों से घेर लेती है।

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