करौंदा की खेती

फलों में करीदा का उपयोग प्राचीन समय से ही कर रहे हैं। इसका पेड़ होता है, जो बारह से पन्द्रह फिट तक उपर बढ़ता है। इसके पत्ते छोटे व गहरे चिकने होते हैं तथा टहनियों पर कांटे होते हैं। इसके उपर लगाने के चार-पाँच साल बाद फल आता है। फल से पूर्व सफेद रंग के …

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लहसुन की खेती

लहसुन का उपयोग हमारे देश में वैदिक काल से सब्जी के लिए मसालों व दवा के रूप मे लिया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह हमारे रक्त में जमा कॉलस्ट्राल को कम करता है। इसके उपयोग से हमारी पाचन शक्ति ठीक रहती है। गैस नहीं बनती, इसकी गाँठ गठिया, स्वाँस व पुरानी खाँसी …

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मेथी की खेती

मेथी की खेती हमारे देश में आदिकाल से ही की जाती है – एक मोटी होती है तथा दूसरी बारीक। मोटी को सब्जी मसाले आदि में काम लेते हैं। इसकी पत्तियाँ बड़ी होती हैं। दूसरी को लालर मेथी कहते हैं, इसकी पत्तियाँ छोटी होती हैं। खुशबू ज्यादा होने के कारण इसकी पत्तियों का उपयोग सब्जी …

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धनिया की खेती

धनिया मसाले के रूप में काम में लिया जाता है। इसका बीज गहरा भूरे रंग का और काली मिर्च के बराबर होता है। उपर हल्की धारी व थोथा होता है। यह शीतोष्ण है, यह शरीर के तापमान को सही रखता है। हरा धनिया प्राय: खुशबू के लिए सब्जी में डाला जाता है तथा बटनी बनाकर …

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जीरा

मसालों में जीरा बहुत ही महत्वपूर्ण है। शीतलता का गुण होने से यह हमारे शरीर के अन्दरूनी भाग में फोड़ा-फुंसी व घाव होने से बचाता है। इसका बीज लम्बा व गोल होता है, उपर हल्की धारियाँ होती हैं। इसके बीज का आकार गाजर के बीज की तरह होता है। भूमि:- जीरा फाली दुमट व बालू …

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अजवायन

अजवायन का दाना गहरे हरे रंग का लम्बा व बीज गाजर की तरह का होता है। ऊपर बारीक धारियाँ बनी हुई होती हैं। यह पाचक, रुचिकारक, पित्तनाशक होता है। यह खाने में गरम व तीक्ष्ण होता है तथा गर्भाशय को उत्तेजित करने वाला होता है। पीलिया रोग व बवासीर को खत्म करता है। इसके सेवन …

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कैर की खेती

कैर एक जंगली पेड़ है। यह प्राय: उन स्थानों पर पाया जाता है जहाँ की मिट्टी कठोर हो व जमीन जोत के काम आने काबिल न हो। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती हैं तथा डाली और तने पर उभरता हुआ कवच (छोड़ा) होता है। पश्चिमी राजस्थान में जहाँ सैकड़ों बीघा ज़मीन बंजर पड़ी हुई है …

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मूली की खेती

मूली हमारे देश में प्राय: सभी जगह बोई जाती है। इसके लिए खाद वाली बालू मिट्टी अच्छी रहती है। इसकी फसल अगस्त से मार्च तक रहती है। केवल उत्तर भारत में इसकी फसल बारह मास चलती है। इसका जीवन 70 से 75 दिन का होता है। मूली बीज डालने के 45 दिन में तैयार हो …

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करेला की खेती

हमारे देश में करेला आदिकाल से चला आ रहा है। पहले किसानों के खेतों के चारों तरफ डोली पर काँटेदार छाड़ियाँ होती थी, जो आवारा पशुओं से खेत की रक्षा के लिए लगाई जाती थी। उसमें यह प्राकृतिक रुप से उगता था। किसान इसकी सब्जी बनाते। यह पकने पर लाल होता था व अपने आप …

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पालक की प्राकृतिक खेती

यह हरे पत्तों वाली सब्जी है। इसके पत्ते लम्बे व चौड़े तथा उपर से गोलाकार होते हैं। इसमें भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं। ये वात, कफ, ज्वर नाशक होता है। पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा खून का शुद्ध करता है। वायु विकारों को दूर करता है। यह सब्जी बनाने या पूड़ी, …

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