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जीरा

मसालों में जीरा बहुत ही महत्वपूर्ण है। शीतलता का गुण होने से यह हमारे शरीर के अन्दरूनी भाग में फोड़ा-फुंसी व घाव होने से बचाता है। इसका बीज लम्बा व गोल होता है, उपर हल्की धारियाँ होती हैं। इसके बीज का आकार गाजर के बीज की तरह होता है।

  1. भूमि:- जीरा फाली दुमट व बालू दुमट दोनों में ही पैदावार देता है। लेकिन रेतीली दुमट में पौधों की बढ़वार कम होती है, जिसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।
  2. खाद:- जीरे की खेती में 60 से 70 किंटल प्रति हैक्टर कम्पोस्ट खाद डालकर जमीन में फैला दें।
  3. बुवाई:- जीरा नवम्बर माह में बोया जाता है। इसको बोने से पहले जमीन में पलेवा कर, दो-तीन दिन जमीन को उपर से सुखाकर दो-तीन जुताई करें। बाद में पाटा फेरकर 70 से 80 किलो ग्राम बीज प्रति हैक्टर डालकर दुबारा पाटा फिरवायें। बीज डालने से पूर्व बीज में जीरे का मोटा दाना छंटवाई करें व बारीक पतला दाना ही काम में लें। इसके बाद क्यारियाँ बना लें।
  4. खरपतवार: जब जीरा एक माह का हो जाये तो खरपतवार निकालते हैं तथा दो-दो, तीन-तीन पेड़ आसपास होने की स्थिति में पौधों की छटनी कर 9-10 इंच पर पौधे को रख दें। खरपतवार निकालते समय ही पौधों के मिट्टी चढ़ाते हैं। पाँच-सात दिन बाद जब कुन्दे छोड़ना शुरू कर दे, तब दूसरा पानी देते हैं। बोने के दो महिने की अवधि के बाद पौधों की टहनियों पर फूल आना शुरू हो जाता है व उसमें जीरे के दाने पड़ते हैं, इसमें ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। पफाई से पूर्व पानी देकर छोड़ देते हैं। जीरे में अढ़ाई पानी लगाते हैं, आखिरी पानी हल्का लगता है।
  5. रोग नियंत्रण –  जीरा प्राय: शरद ऋतु में बोया जाता है। उस वक्त ओस पड़ती है या वर्षा होती है तो इसके फूल में पानी भर जाता है। पानी भरने से एफिड़ (अ) लगता है। उस वक्त सुबह सींव के दोनों किनारों पर दो आदमी खड़े होकर रस्सी के दोनों मुंह पकड़कर आगे चलते रहते हैं पौधों के हिलने से ओस झड़ जाती है। ऐसा चार-पाँच दिन करने से दाना मजबूत बनता है तथा इसके उपर धूप में राख और कली (चूना) समान मात्रा में मिलाकर छिड़काव करते हैं।
  6. कटाई:- पकने पर जीरा पीला हो जाता है। इसको सरसों की तरह उपर से काटकर भारे बनाकर धूप में सुखाया जाता है तथा पूर्णरूप से सूखने पर डण्डे की सहायता से झाड़ते हैं। झाड़ने के बाद अवशेष खाद में काम आते हैं व जीरा छानकर बोरे में भर दिया जाता है।

सावधानियाँ: :- एक कहावत है कि ‘जीरो जीव को बैरी रै, मत बाव म्हारा परण्या जीरो’ अर्थात अणी चूकी, धार मारी। तात्पर्य यह है कि बार-बार ओस नहीं झाडने से फूल में पानी भर जाता है व कच्चे जीरे को पीला व बारीक कर देता है, जिसे बाजार में बेचा नहीं जा सकता।

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