कार्तिक स्नान की कथा

सच्ची श्रद्धा का फल

एक समय की बात है किसी नगर में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था और उसकी सात बहुएँ थी। एक बार कार्तिक का महीना आया और उसने अपनी बहुओं से कहा कि मैं कार्तिक का स्नान करुंगा, क्या तुम इसे निभा दोगी?

सात में से छ: बहुओं ने मना कर दिया लेकिन बड़ी बहू ने कहा कि मैं निभा दूंगी। बूढ़ा हर रोज सुबह उठता और नदी पर स्नान कर घर आता। गीली धोती को वह बड़ी बहू के आँगन में सुखा देता। जैसे-जैसे उस गीली धोती में से पानी की बूँदें जमीन पर गिरती वैसे ही वह हीरे मोतियों में बदल जाती।

धोती से हीरे-मोती गिरते देख बाकी छ: बहुओं से रहा नही गया और वे बोली कि हम भी बूढ़े को अपने यहाँ नहाने को बोलते हैं। उन्होने कहा कि पिताजी आप कल से हमारे यहाँ कार्तिक नहा लेना। बूढ़े ने कहा कि ठीक है, मुझे तो नहाना ही है, मैं तुम्हारे यहाँ नहा लूंगा।

बूढ़ा सुबह सवेरे स्नान कर के आया और धोती उसने दूसरी बहू के आँगन में सुखाने के लिए डाल दी लेकिन यहाँ हीरे-मोती की बजाय कीचड़ टपकने लगा। बहुओं ने यह देखा तो कहा कि आप हमारे यहाँ पाप का स्नान कर रहे हो इसलिए यहाँ से जाओ और बड़ी बहू के यहाँ ही स्नान करो।

बूढ़ा वापिस बड़ी बहू के यहाँ आया और कार्तिक का स्नान करने लगा। स्नान कर के उसने फिर धोती सुखाई तो फिर से हीरे-मोती गिरने लगे। अब कार्तिक का महीना समाप्त होने को था। बूढ़ा चिंता में पड़ गया तो बड़ी बहू ने इसका कारण पूछा। उसने कहा कि कार्तिक स्नान समाप्त होने को है और मेरा मन है कि मैं सारे परिवार को एक दिन खाने का न्यौता दूँ। बड़ी बहू ने कहा कि पिताजी! इसमें चिंता की क्या बात है, आप सभी को बुला लें मैं खाना बना दूंगी।

बूढ़ा सभी को निमंत्रण देने गया तो बाकी बहुओं ने कहा कि जब तक यह घर पर रहेगी हम खाने पर नहीं आएंगे। बूढ़ा फिर से चिंता में घिर गया कि ऎसे कैसे होगा और सूखने लगा। बूढ़े को सूखते देख बड़ी बहू ने कहा कि पिताजी अब आपको क्या चिंता है?

बूढ़े ने बाकी छ: बहुओं वाली बात बड़ी बहू को बता दी जिसे सुन वह बोली कि पिताजी ठीक है। मैं खाना बनाकर रख जाऊँगी और उसने वैसा ही किया। खाना बनाकर रख दिया और अपने लिए चार रोटी लेकर खेत पर चली गई। इधर छहो बहुओं ने खाना खा लिया लेकिन जाने से पहले बाकी बचे खाने में कंकड़ पत्थर डाल गई कि बड़ी बहू आएगी तो परेशान होगी।

इधर खेत में बैठकर बड़ी बहू कहने लगी कि – राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत। चुग लो चिड़िया भर-भर पेट। मेरे ससुरे ने घर में जगह दी है और मैने खेत में। चिड़िया को बाजरा डाल वह घर आ गई। घर आई तो बूढ़ा फिर उदास बैठा था। उसने फिर पूछा कि यह उदासी क्यूँ? सब ठीक-ठाक निपट गया ना!

वह बोला कि हाँ सब ठीक निपट गया लेकिन वह तेरी देवरानियाँ बाकी बचे खाने में कंकड़-पत्थर व मिट्टी डाल गई। बहू ने कहा कि कोई बात नहीं पिताजी, मैं तो अपने लिए चार रोटी फिर बना लूँगी।

बहू बूढ़े से बात कर घर के भीतर जाकर खाने को देखती है लेकिन वह देखती हैं कि जिस खाने में वह सब कंकड़-पत्थर डालती हैं वह हीरे-मोती में बदल गए हैं। घर की जगह महल खड़ा हो गया है और धन-दौलत से भर गया है। अन्न के भंडार घर में भरे पड़े हैं।

वह बूढ़े को बुलाकर कहती है कि पिताजी आपने तो कहा था कि मेरे लिए कुछ नहीं बचा है लेकिन यहाँ तो हीरे-मोतियों के भंडार हो गए हैं। पूरे घर में धन की वर्षा हो रही है। साधारण सा घर महल में बदल गया है।

बूढ़ा सब चीजें देखकर बोला कि – बेटी तुमने सच्चे मन से कार्तिक स्नान सच्चे मन से निभाया था लेकिन बाकी बहुओं ने पापी मन से इसे निभाया। इसलिए कार्तिक देवता तुमसे प्रसन्न हुए और यह फल दिया।

हे कार्तिक देवता ! जैसे आपने बड़ी बहू की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना।

Leave a Comment