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उड़द की खेती

उड़द का उद्गम स्थल भारत ही माना जाता है। इसकी खेती उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के

कुछ जिले व अन्य राज्यों में भी होती है।

  1. मिट्टी – इसके लिए पानी के अच्छे निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। भारत में इसको काली मिट्टी में भी उगाया जाता है।
  2. खाद:- इसकी खेती में खाद नहीं डाला जाता है। वैसे दलहन की खेती में खाद की आवश्यकता नहीं रहती।
  3. सिंचाई:- इसके लिए वर्षा का पानी ही काफी रहता है। अगर सितम्बर माह में वर्षा की कमी रहे तो अक्टूबर शुरू में एक सिंचाई ही काफी होती है।
  4. बुवाई का समय :- इसकी बुवाई, अगर वर्षा जल्दी हो तो जून में या जुलाई की जाती है। जहां पानी का अच्छा साधन है, वहां मई माह में भी इसकी बुवाई करते हैं।
  5. बीज की मात्रा: इसके लिए 25 से 30 किलो बीज प्रति हैक्टर के हिसाब से हो। अगर चारे के लिए बोई जाती है तो बीज की मात्रा थोड़ी बढ़ा दी जाती है। इसको छिड़क कर या हल द्वारा पंक्तियों में बोई जाती है। इसमें पेड़ की दूरी 8 इंच से कम न हो व लाईन की दूरी 1 / 1 फुट होनी चाहिए।
  6. निराई गुड़ाई: इसमें निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी एक बार- निराई गुड़ाई करने से इसकी फसल अच्छी बन जाती है।
  7. कटाई:- उड़द की फसल 30 अक्टूबर 15 नवम्बर तक पक जाती है।
  8. शेष अवशेष:- पशुओं को खिलाने व खाद बनाने के काम आता है।
  9. उत्पादन :- इसका उत्पादन कम होता है। 10 से 12 क्विंटल प्रति हैक्टर तक इसका उत्पादन अच्छा माना जाता है।
  10. बाजार भाव :- यह दाल के काम आती है। दालों के भाव अन्य अनाजों से अधिक रहते हैं। अत: इसका भाव गेहूं से दो-तीन गुणा अधिक होता है।
  11. निर्यात:- इसके दाने का रंग काला, मुंह सफेद व बादामी रंग भी होता है। प्रायः इसकी दाल बनाकर निर्यात की जाती है।
  12. आयात- आयात नहीं होता है।

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