किसान परम्परागत खेती के साथ सदियों से पशुपालन भी करता आ रहा है, जिस प्रकार एक चुनरी गोटे के बिना अपूरी रहती है, उसी प्रकार कृषि भी पशुपालन के बिना अधूरी रहती है। किसान गाय, भैंस, बकरी भेड़ पालकर दो-तीन साल बाद जब शादी-विवाह, मात- पेज व अन्य सामाजिफ खर्चे आते है तो ज्यादा पैसों की आवश्यकता होती है, इनसे निजात पाने के लिए किसान गाय, गैस, बकरी व भेड़ का पालन करता है। बिमारियाँ प्राय: स्वयं किसान व पशुधन दोनों में ही आती हैं, जहाँ तक सम्भव हो किसान इनका उपचार परम्परागत तरीकों से करता स्थिति ज्यादा खराब होने पर ही चिकित्सा पद्धतियों का सहारा लेता है। किसान तो प्राय: कहा करते हैं कि ‘उगता सूरज की वै फिरणा, दोन्हें भगतांकी मस्त हवा चोखो दूध-दही म्हे खावाँ फिर क्यूँ लेवां व्यर्थ दवा।’ किसान तो अपना तात्कालिक उपचार कर ही लेता है, लेकिन घर में पशु बीमार होने पर भी किसान अपने परम्परागत तरीकों को अपनाता है :
(1) पशुओं में सर्दी जुकाम होने पर:
- लकड़ी के कोयलों के तपते हुए अंगारे बनाकर उन पर अजवाइन डालकर उसके धुंआ को पशु के मुँह व नाक के सामने करें ताकि स्वांस क्रिया के माध्यम से स्वांस नली एवं फेफड़ों तक गर्म हवा पहुँच सके, जो एक तरफ से गरम भाप का काम कर, बीमारी में राहत देगी। इस क्रिया को बन्द जगह दो-तीन दिन लगातार करें।
- पीड़ित पशु को ठंड से बचायें, रात को खुले में न रखें तथा राख छानकर इसके शरीर पर हल्का लेप करें। उसके बैठने की जगह मल-मूत्र को उठाकर सूखी मिट्टी डालें।
- बीमार पशु को ठंडा पानी न पिलायें, सामान्य तापमान का पानी पीने के लिए उपलब्ध करवायें। एक बाल्टी में लगभग 20 ग्राम अजवाइन डालें, सर्दी जुकाम के साथ-साथ पशु के खांसी भी होती है, ऐसी स्थिति में बीमार पशु को 100 ग्राम पुराने गुड़ में 25 ग्राम पिसी हुई हल्दी मिलाकर लड्डू बनाकर दें या रोटी को मोड़कर बीच में देकर खिलायें। अगर उपलब्ध हो सके तो भैंस घाबरा जो एक जंगली पेड़ होता है उसकी कुट्टी बनाकर पानी में उबाल लें, ठण्डा होने के बाद पशु को पिलायें।
(2) आफरा:
पेट का आफरा रोग उचित खान पान न मिलने अथवा क्षमता से अधिक खाने की वजह से अजीर्ण होकर आफरा रोग होता है। इसके प्राथमिक उपाय निम्न प्रकार हैं:
- पीड़ित पशु के मुंह के सामने नीम की टहनियाँ पत्तों सहित तोड़कर लकड़ी के सहारे पशु के सामने लटका दी जाती हैं, जो खासकर भेड़ बकरी के लिए उपयोगी हैं। भेड़ बकरी पत्तों को चबाने की कोशिश करती है मुँह बार-बार हिलाने पर पेट की वायु बाहर निकलती है तथा बार-बार मुँह खुलने से फेफड़ों तक बाहरी हवा ठीक तरह से पहुँचती है।
- इसमें आफरा आने पर सभी पीड़ित पशुओं को उचित मात्रा में खट्टी छाछ व देसी काचरी कूटकर मिलाकर नॉल या बोतल के सहारे जीभ को दबाकर पिलाई जाती है।
- प्राय: भेड़ बकरियों में आम के आचार का तेल छानकर उचित मात्रा में दिया जाता है।
- हींग, सरसों या तिल्ली का तेल उचित मात्रा में देने से सभी पशुओं का आफरा ठीक होता है।
- मुँह पर मिट्टी का तेल लगाकर नाकों के सामने हाथ करते हैं, उससे अन्दर गन्ध जाती है, जिससे आफरा ठीक होता है।
- मीठे सोडे को पानी में घोलकर पिलाने से भी आफरा ठीक होता है।
(3) थनैला रोग:
दुधारु पशुओं की गादी के स्तनों से दूध का कम आना या बन्द हो जाना अथवा दूध की
गुणवत्ता में परिवर्तन होना थनेला रोग कहलाता है। यह संक्रमण रोग है। प्राथमिक
उपचार व सावधानियाँ:
- स्तनों व गादी पर बर्फ अथवा मिट्टी के ठडे घड़े का पानी लेकर सेक करें व गादी में छिड़काव करें।
- बीमार पशु को उचित मात्रा में प्रातः दो साल पुराने गुड़ का सेवन करवायें।
- पशुओं के बाड़े (आवास) को साफ सुथरा रखा जाये।
- स्वस्थ पशु का दूध पहले व पीड़ित पशु का दूध बाद में निकालें।
- दूध निकालने वाले के दोनों हाथ स्वच्छ पानी से साबुन के साथ धोयें।
- बीमार पशु को उचित मात्रा में नींबू के रस का सेवन कराया जाय।
- दुधारु पशुओं को बाटे में उचित मात्रा में तेल डालकर तथा अदरक को कूटकर बाटे में
मिलाकर खिलायें।
(4) कैज रोग:
नवजात बछड़ा-बछड़ी, पाड़ा-पाड़ी व मेमनों में कैज होना या मिट्टी चाटना एक ऐसी
व्याधी है जिससे पशु बिलकुल कमजोर हो जाता है तथा उठ नहीं सकता। प्राथमिक
उपचार एवं सावधानियां :
- नवजात को सरसों या तिल्ली का तेल उचित मात्रा में दिया जाय। तेल को सूती कपड़े या रूई में भिगोकर मुँह फाड़कर जीभ पर निचोड़ दें, तेल पूर्ण सावधानी पूर्वक दिया जाय ताकि तेल की धार नाल से पेट में ही जाये, स्वांस नली में न जाये स्वांस नली में जाने से पशु की मौत भी हो सकती है।
- पशु को सुबह-शाम एक-आघ घण्टे के लिए धूप में रखा जाय।
(5) जेर गिराना या गर्भाशय की सफाई:
पशु ब्याने के बाद कई बार जेर नहीं गिरता। वह गर्भाशय में चिपक जाती है, जो शरीर के बाहर नहीं आती जिससे गर्भाशय में संक्रमण की आशंका रहती है, जिसका प्राथमिक उपचार इस तरह से किया जाता है:
- ब्याने के बाद गाय-भैंस को 5 से 7 लौंग व भेड़-बकरी को 2 से 3 लौंग रोटी के बीच में दबाकर या गुड़ के साथ में खिलायें।
- गुड़ अजवाइन का काढ़ा बनाकर भी दिया जा सकता है।
- जेर अगर थोड़ी बाहर आ गई हो तो बाहरी छोर पर हल्के वजन का लकड़ी का छोटा टुकड़ा बांध कर लटकाया जा सकता है।
- हरे बांस के पत्ते ओटाकर उसमें गुड़ मिलाकर पिलाया जाता है।
- पशु निवास पर पूर्ण सफाई रखी जाये।
- पशु को हल्का गुनगुना पानी भी पीने हेतु उपलब्ध करायें जिसमें एक मुट्ठी अजवाइन हो।
(6) फोड़ा-फुंसी:
किसी पशु के फोड़ा-फुंसी होने पर फोड़ा फूटा नहीं हो तो हल्के गरम पानी में खाने वाला नमक डालकर सूती कपड़ा भिगोकर अथवा रूई से सेक करना चाहिए। फोड़ा फुंसी फूट जाने पर निम्न प्रकार से प्राथमिक उपचार किया जाये।
- नीम के पत्तों को पानी में उबाल कर तथा पानी में खाने वाला नमक उचित मात्रा में मिलाकर फोड़ा-फुंसी को भली प्रकार धोया जाये। अगर मवाद है तो कपड़ा या रूई से हाथ का हल्का दबाव देकर मवाद को निकालकर साफ कर दिया जाये।
- फोड़ा-फुंसी के स्थान पर देसी घी में हल्दी मिलाकर लगायें, घाव पर मिट्टी न लगने दें
(7) पशु का कम चरना अर्थात कुच्चर होना:
प्रायः पशु चारा नहीं चरते हैं। बाट नहीं खाते हैं, इस वजह से कमजोर हो जाते हैं तथा खड़े होने की शक्ति नहीं होती। ऐसे समय में हरड़, मैथी, अजवाइन, सौंफ का नमक पाँचों को समान मात्रा में लेकर एक साथ कूटकर कुछ दिनों तक दिया जाये तो पशु की भूख खुल जाती है और हाजमा ठीक हो जाता है।
(8) पशु रोग की देशी चिकित्सा
पशु का अकड़ जाना – ठंडी अथवा बरसात में बंधे रहने से पशु का शरीर अकड़ जाता है। ठीक चल नहीं पाता चारा कम खाना है। दूध कम होता है।
उपचार 1 – सरसों का तेल आधा लीटर, काला नमक 6 ग्राम, दोनों को मिलाकर सुबह-शाम पिलाएं।
उपचार 2 – मेथी आघा किलो, पानी ढाई लीटर, मेथी को बारीक पीसकर पानी के साथ उबाले, गाढ़ा हो जाने पर गुनगुना रहते पिला दें।
- विषैली चरी खाना – अलसी का भूसा अधिक खा लेने से अथवा कम सिंचाई वाले खेत की चरी खाने से पशु के शरीर में जहर फैलने लगता है –
उपचार 1 – बछांग (जलजमनी) आधा किलो, पानी 1 लीटर, बछांग को महीन पीसकर एक लीटर पानी से मिलाकर दो-दो घण्टे में दे, पशु को खूब नहला अथवा उसके शरीर पर गली मिट्टी का लेप कर दें।
उपचार 2- गुड़ आधा किलो, मट्ठा 2 लीटर, यही खुराक पशु को तीन-तीन घण्टे पर अच्छा होने तक पिलाएं।
- पशु के आंख में फूली पडना – पशुओं के आपस में लड़ने, ठण्डा लगने अथवा झाड़ियों की टहनी लग जाने से आंख में सफेदी (फूली) पड़ जाती है
उपचार 1- गुराड की जड, गोमूत्र अथवा में घिसकर बारीक अंजन बनाकर सुबह शाम आंख में लगायें।
उपचार 2 – प्याज का रस 10 मिली, फिटकरी 5 ग्राम आमाहल्दी 5 ग्राम फिटकरी, आमाहल्दी को महीन पीसकर प्याज के रस में मिलाकर अंजन बना लें एवं सुबह-शाम आंख में आराम होने तक लगायें।
- आग से जल जाना ठण्डी में ओढ़ाये हुए बोरे से जल जाने पर अथवा गर्मी के मौसम में मडही में आग लगाने से पशु अक्सर जल जाते हैं –
उपचार 1 – अलसी का तेल 120 ग्राम, चूने का पानी 60 ग्राम, बारुद (राल) 12 ग्राम तीनों को फेंटकर दिन में तीन बार ठीक होने तक लगाते रहें।
उपचार 2 – मोर के पंख को जलाकर इसके बारीक राख नारियल के तेल में फेंटकर, ठीक होने तक दिन में तीन बार लगाते रहें।
- पशुओं में कंठ की बीमारी – पशुओं में कण्ठ सूज जाने से गला अत्यधिक सूजा हुआ दिखाई पड़ता है, चिकित्सक अक्सर गलाघोटू नामक रोग से भ्रमित होते हैं-
इलाज – गाय का मूत्र 500 मिली, नीला थोथा 12 ग्राम को बारीक पीसकर नीला थोया एवं गोमूत्र दोनों को आपस में मिलाएं एवं सुबह-शाम पिलाएं। नीम की पत्ती 3 बांधकर गुनगुने पानी से गले की सिकाई करें।