खेती और किसानी को समर्पित मेरा जीवन और मेरे प्रेरक – जगदीश प्रसाद पारीक

परिचय

मैं जगदीश प्रसाद पारीक पुत्र स्व. श्री मांगी लाल पारीक राजस्थान राज्य के सीकर जिले की तहसील श्रीमाधोपुर की ग्राम पंचायत अजीतगढ़ का रहने वाला हूँ। मेरा जन्म 29 फरवरी 1948 को मेरे मामा श्री जवाहर मल जी के घर हुआ। मेरे मामाजी उस समय के अच्छे जानकार किसान थे। उनकी पत्नी का देहान्त मेरे जन्म से 30 वर्ष पूर्व ही हो गया था। उनके छोटे भाई श्री भगवान सहाय जी थे। वे भी कृषि कार्य ही किया करते थे। मेरे जन्म से पूर्व उनके भी चार सन्तान हुई थी, लेकिन उनमें जीवित कोई भी सन्तान नहीं थी। मेरी नानी, दो मामा व छोटी मामी चार का ही परिवार था। मेरे जन्म के एक साल बाद मेरी माँ मुझे अजीतगढ़ मामाजी के घर छोड़ कर अपने गाँव चली गई जो अजीतगढ़ से 25 कि.मी. दूरी पर कांवट के पास ग्रामदानी गाँव खातियों की ढ़ाणी है। कारण यह था कि मेरे से पहले हमारे 7 भाई-बहन थे, जीवन नहीं बच सका था इस कारण मुझे नाना, मामा-मामी के गोद दे दिया। नानी, मामा व मामी ने मुझे सगे पुत्र की तरह पालना शुरू किया।

खेती से लगाव और जुड़ाव

अक्टूबर 1957 में मामाजी ने एक बीघा मूली बोई, डेढ़ महिने बाद में, मूली उखाड़कर सायं को धोकर रख देता व सुबह बाजार में, जहाँ सब्जी बिकती वहाँ बैठकर दो पैसे की तीन चार मूली बेचता व दस बारह आने की सब्जी (मूली) रोज बेचता। रविवार या छुट्टी के दिन 2-3 रूपये की मूली बेचता और बहुत खुश होता कि आज मैंने तीन रूपये कमाये हैं। मार्च अप्रैल 1958 को मेरे मामाजी ने गर्मी में टमाटर, बैंगन, ककड़ी, खरबूजे व तरबूज आदि करीबन दो बीघा में बोये। गर्मी में मामाजी बाजार में सब्जी रखवा देते, मैं अकेला सात आठ रूपये तक की सब्जी बेचता। उस समय भाव बहुत कम थे। पाँच पैसे से बीस पैसे प्रति किलो तक ही भाव थे। धीरे-धीरे तीनों मौसमों की सब्जियाँ बोने लगे व 1960 तक 10 रूपये प्रति दिन तक की सब्जी बेच देता। मामाजी ने कभी भी सब्जी का पैसा मेरे से नहीं लिया। मेरी पढ़ाई व घर खर्च मेरे जिम्मे था।

पढाई लिखाई और खेती बाड़ी

1965 में मैंने कक्षा 8 पास कर निकट ही अमरसर स्कूल में जीव विज्ञान विषय लेकर 2 जुलाई 1965 को कक्षा 9 में प्रवेश लिया। सुबह जल्दी उठकर, सब्जी बेचता व 9 बजे खाना खाकर साईकिल द्वारा स्कूल जाता सायं वापस आकर सब्जी तैयार करता ।

मेरी नानीजी का फरवरी 1964 में ही देवलोक गमन हो गया था। मामीजी घर में अकेली ही थी जो 9-10 गाय, 2 बैल व 2-3 भैंस पालने का काम अकेली नहीं कर सकती थी। अत: मेरा विवाह 13 1965 को मामाजी व मामीजी की देख-रेख में सम्पन्न हुआ।

नौकरी रोजगार की तलाश

कक्षा 10 के बाद पढ़ाई छोड़कर मैं शिवसागर (आसाम) चला गया। वहाँ मेरी नौकरी ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कारपोरेशन में लग गई। मेरे मामाजी व पूरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं सरकारी नौकरी करूं, लेकिन मैं चाहता था इसलिए घर वालों को बिना सूचना दिये की आसाम चला गया। मैंने वहाँ करीब 8 माह तक नौकरी की। मैं घर पर पत्र व्यवहार करता किन्तु घरवाले निरक्षर होने के कारण मुझे घर के समाचार नहीं पहुंचा पाते। आखिर मुझे लगा कि घर पर में 20-25 रूपये की रोज सब्जी बेचता और यहाँ पर वालों से दूर रहकर भी 10 रूपये रोज ही मिलते हैं।

घर वापिसी

दिसम्बर 1968 में श्री जवाहर मल जी, मेरे बड़े मामाजी बहुत ज्यादा बीमार हो गये। एक महिने की बीमारी के बाद उनकी जिन्दा रहने की उम्मीद नहीं थी तो उनकी चिकित्सा करने वाले वैद्य रामबयस शर्मा जो उस वक्त अजीतगढ़ के सरपंच भी थे उन्होंने मामाजी से पूछा कि आपकी इच्छा क्या है ? तो मामाजी रोने लग गये और मुझे आसाम से वापस बुलाने की इच्छा जाहिर की। वैद्यजी ने उसी दिन सायंकाल मेरे छोटे मामाजी श्री भगवान सहाय जी को आसाम मेरे को लेने भेज दिया। उस वक्त में ड्यूटी पर गया हुआ था मैं 6 बजे वापस आया तो वो रोने लग गये एवं बीमार मामाजी का पूरा हाल बताया, यह सुनकर मैं मेरे मामाजी के साथ रात्री साढ़े नौ बजे की गाड़ी से रवाना होकर तीसरे दिन सुबह अजीतगढ़ आ गये। मुझे देखते ही बड़े मामाजी ने गले लगा लिया एवं बहुत प्रसन्न हुए। करीब 20 दिन बाद में उनको लेकर बाजार गया, वो एक महिने में बिना दवा के ही ठीक हो गये।

किसानी जीवन की शुरुआत

वर्ष 1969 में हमने कृषि विद्युत कनेक्शन के लिए फार्म भर दिया एवं दिनांक 18 दिसम्बर 1970 को हमारा विद्युत सम्बन्ध जुड़ गया। उसके बाद में मैंने स्वतंत्र रूप से खेती करना शुरू कर दिया। मेरे दोनों मामाजी एवं मामीजी चाहते थे कि मैं घर पर रहकर ही उनकी सेवा करूं। अतः मैंनें भी उनकी सेवा करना ही परम धर्म समझा। मेरे परिवार में पहले से भी सरकारी अथवा प्राइवेट नौकरी में कोई भी नहीं था। मैंने भी कृषि कार्य को ही अपना कैरियर बनाने की ठान ली।

माह फरवरी 1971 में मैंने अगैती भिण्डी, कद्दू, ककड़ी, खरबूज, लौकी आदि की करीबन 10 बीघा में बुवाई शुरू की। इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर कतार में लम्बी लम्बी क्यारियाँ तैयार की व उनमें डेढ़ फिट की दूरी पर चारों तरफ बेल की सब्जियाँ यो दी एवं क्यारियाँ बनाकर दो बीघा में भिण्डी लगा दी। लगातार पानी देता रहा, समय पर निराई-गुड़ाई की व पानी के साथ खड्डों में सड़ा हुआ खाद भरवाया। गर्मी में खूब लू चली, खूब फल आये। इनके उपर किसी प्रकार का रसायन नहीं होने के कारण वजन और सुन्दरता में श्रेष्ठ होने के कारण बाजार में अच्छी माँग रही व गर्मियों में विवाह के कारण मेरी सब्जियाँ अच्छी कीमत में बिकी और मुझे 25-30 हजार का फायदा हुआ व आसपास के क्षेत्र में जानकारी हो गई क्यों कि अजीतगढ़ क्षेत्र में मैं ही अकेला सब्जी बोने वाला किसान था।

 वर्षा ऋतु शुरू होते ही मैंने बोई गई सब्जियों की बैलों को हैरो सेट अन्दर मिलाकर हरी खाद तैयार की व दस बीघा में बाजरा, मूंग, ग्वार तिल की बुवाई की क्योंकि इससे मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध हो जाये व परिवार के खाने योग्य भी हो जाये। शेष बची 10 बीघा भूमि में सब्जी जिसमें मिण्डी, बैंगन, टमाटर, गोभी, पालक, पनिया आदि बोने के लिए जमीन तैयार की। फूल गोभी को छोड़कर मैंने थोड़ी-थोड़ी सभी मजियाँ लगा दी।

गोभी से परिचय और शोध

मुझे शुरू में फूल गोभी के बारे में जानकारी नहीं थी और आसपास बीज भी नहीं था इसलिए मैं जयपुर (चार दरवाजे) क्षेत्र में मालियों के कुएं पर गया व फूल गोभी की पौध को देखा व उसके बोने के तौर तरीकों की जानकारी ली एवं दो बीघा जमीन हेतु फूल गोभी की पौध लेकर आया। क्यारियाँ बनाई व उनमें एक ओर डेढ़ फुट के अन्तराल पर गोभी लगवा

दो, तीन-चार दिन बाद दूसरा पानी दिया। नये पत्ते निकलने के बाद निराई-गुड़ाई की तथा खड्डे में गोवर-मींगणी-आक-नीम-झोझरू आदि का सढ़ाया हुआ खाद तैयार था उसको पानी के साथ क्यारियों में बहाया। इस तरह एक महिने के अन्दर सभी तरह की सब्जियों की खरपतवार निकाल कर गुड़ाई की व पानी डाला उससे पौधे स्वस्थ हो गये।

मैंने दूसरी बार बोने वाली गोभी की पौध भी उन्हीं से खरीदी व लाकर अपने कुएं पर लगवा दी। इसे भी उपरोक्त विधि द्वारा ही तैयार किया। अब 15 सितम्बर के करीब मैंने फिर जयपुर जाकर उनके द्वारा लगाई गई दोनों तरह की गोभियों की जानकारी ली व देखी।

सितम्बर में तीसरी फसल लेने वाली गोभी की पौधे लेकर आया एवं उसे भी उपरोक्त विधि द्वारा ही लगाया एवं समय पर निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार निकलवाकर खड्डे में सड़ा हुआ गोवर, मांगणी, आक, नीम, झोझरू आदि पानी के साथ बहाया। दो अक्टूबर महात्मा गांधी की जयन्ती पर फूल गोभी की पहली खेप तोड़कर मुहुर्त किया। शुरू में 10-15 कि.ग्रा. फूल गोभी लेकर बाजार गया जो 40 पैसे प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकी व दूसरे दिन से भिण्डी, बैंगन, टमाटर, पालक, धनिया आदि टोकरे में लेकर बाजार जाता तो करीब 40-45 कि.ग्रा. वजन होने पर 20-25 रूपये मुझे 10 बजे से पहले मिल जाते। इसी तरह मेरा कार्यक्रम आगे बढ़ता रहा एवं उत्पादन भी ज्यादा होने पर आमदनी भी बढ़ती चली गई। इस प्रकार 50-60 रूपये प्रतिदिन मुझे मिल जाता था।

बीज बनाने की कला से परिचय

बाजरा कटाई के बाद जमीन को तैयार कर नवम्बर महिने में मैंने खाने के लिए गेहूँ, जीव सरसों आदि की बुवाई करवा दी। फरवरी 1971 में लेट बोई जाने वाली फूलगोभी के बीज के लिए गया तो मुझे न बीज मिला न पौध। उसके खेत में फूलगोभी के पौधों पर डण्ठल फूट रहे थे जिनके उपर सरसों की तरह फूल आ रहे थे व सरसों की तरह बालियाँ निकली हुई थी। मैंने पूरी क्यारियों में घूम कर गौर से देखा, सरसों की तरह पीधा एवं सरसों की तरह फली लगी हुई थी। पूछने पर बूढ़े बागवान ने मुझे बताया कि यह अगले साल के लिए बीज तैयार कर रहे हैं। इन्हीं पीथों से अगली पौध तैयार होगी। मेरी उत्सुकता बढ़ती गई फिर मैं दस दिन बाद वापस गया व पके हुए पौधे के बीज की फलियों की दस-बीस टहनियाँ तोड़फर लाया ताकि मैं फूलगोभी के बीज को देख सकूँ उनके बताये अनुसार मैंने टहनियों को दो-तीन दिन तक सुखाकर बीज निकाला जो सरसों की तरह ही था, उस बीज को जुलाई में बोने के लिए रख दिया।

क्यारियाँ बनाकर 40-50 ग्राम बीज छः गुणा चार की क्यारी में डाला 500 ग्राम बीज में ग्यारह पौध की क्यारियाँ तैयार हुई। पानी देकर उपर सूखी राख का छिड़काव किया ताकि चीटियाँ बीज को निकाल ना सकें। दस दिन बाद पौध की क्यारियों से खरपतवार उखाड़ कर पानी के साथ सड़ा हुआ खाद डाला। करीब 20 दिन में फूलगोभी की नर्सरी तैयार हो गई।

पौध डालते ही दूसरी तरफ मैंने फूलगोभी की पौध लगाने के लिए जमीन तैयार करना शुरू कर दिया। जमीन को एक-दो बार बैलों से जुताफर पाटा लगाकर छोड़ दिया। जुलाई में पहली वर्षा शुरू होते ही करीबन दस टन गोबर की सड़ी हुई खाद डलवाकर तुरन्त दुबारा जुताई करवाई। खाद को मिलाने के बाद पाटा लगवाया। क्यारियाँ बनाकर तीन बजे बाद धूप कम होने पर पौध उखाड़कर मिट्टी झाड़ी तथा एक से डेढ़ फिट के अन्तराल पर पौध लगा दी।

बीस दिन बाद पहली फूलगोभी की पौध लगाई थी, उसकी खरपतवार निकालकर पानी देता रहा तथा समय पर दुबारा लगाई हुई फूलगोभी में भी यही कार्यवाही करता रहा। 55-60 दिन बाद पहली फूलगोभी में फूल आना शुरू हो गया। पहले साल में करीब दो-ढाई किलो वजन का फूल तैयार हुआ। इसके साथ मैंने अन्य सब्जियाँ भी वो रखी थी, उनमें खड्डों में सड़ा कर कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट खाद डालकर सब्जियाँ तैयार करता था। धीरे-धीरे उनका वजन बढ़ता गया, उससे मेरा मनोबल भी बढ़ा। अब मुझे कहीं से न बीज लाने की जरूरत थी न खाद की। तीनों चीजें (खाद, बीज और पानी) मेरे पास मौजूद थे। साथ ही मैंने खूब मेहनत करके भारत सरकार की पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को सात किलो की गोभी भेंट की। उस वक्त मैं बहुत खुश हुआ, साथ ही मेरे मामाजी, जिनके सपोर्ट से मैं यह सफलता प्राप्त कर सका, प्रसन्न हुए। 1985 में मैंने तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष श्री बलराम जाखड़ को नौ किलो का फूलगोभी भेंट की। 1985 से 1990 तक सभी प्रकार की सब्जियाँ बोता रहा इससे मुझे अच्छा मुनाफा होने लगा। मैंने मेरे गाँव की मण्डी के अलावा आसपास के क्षेत्र में बहुतायत में सब्जियाँ उपलब्ध करवाई एवं अच्छा मुनाफा अर्जित किया। दिवराला सती प्रकरण में यहाँ पर सुरक्षा व्यवस्था में लगे करीब 300 सुरक्षाबलों को दोनों वक्त की सब्जी भी मैंने ही सप्लाई की थी एवं खेतड़ी (गोठड़ा) में भी मैं 500 व्यक्तियों हेतु सब्जी सप्लाई नियमित करने लगा। वर्ष 1990 में मैंने तत्कालीन भारत सरकार के उप प्रधान मंत्री श्री देवीलाल जी को 9 किलो ग्राम की फूलगोभी भेंट की।

1974 में ही मेरे दोनों मामाओं ने अपनी संपत्ति मेरे नाम जरिये रजिस्ट्री कर दी थी जो मेरे पास मौजूद है एवं उसी में में आज खेती कर रहा है, जिससे 2 क्टियर है। 4 अगस्त 1990 में मेरे बड़े मामाजी का 24 अगस्त 1990 को मेरे छोटे मामाजी का देहान्त हो गया।

हर सब्जी का वजन व लम्बाई को बढ़ता हुआ देखकर मेरे दिमाग में आया कि मैं भी कोई कीर्तिमान स्थापित करूं जिससे मेरा व मेरे देश का नाम ऊँचा हो। इस क्रम में मुझे पूर्व प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी याद आया और मैने उन्नत फिल्म के बारे में सोचा।

शोध एवं उसका प्रचार

वर्ष 1992-93 में मैंने फूलगोभी का वजन 11 किलो ग्राम तक कर दिया, तुरई की लम्बाई 7 फिट, घीया की लम्बाई 6 फिट, बैंगन एक मीटर लम्बा व दो इंच मोटा, गोल, बैंगन 3 किलो ग्राम, पत्ता गोभी 8 किलो ग्राम, कद्दू 86 किलो ग्राम व एक पेड़ पर 150 मिर्च तैयार की। वर्ष 2001 में मेरा नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में पेज नम्बर 15 पर दर्ज है। इसी दरमियान मैंने सभी सब्जियों का विशेष रूप से फूलगोभी के बीज का उत्पादन भी शुरू कर दिया।

राष्ट्रीय पुरस्कार एवं पद्मश्री

एन.आई.एफ. की स्थापना के बाद चुनिन्दा किसानों को भारत के राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा दिल्ली में पुरस्कृत किया गया। मुझे भी 12 किलो ग्राम फूल गोभी व अन्य सब्जियों के जैविक होने पर व बीज विकास पर रू. 25,000/- का पुरस्कार दिया गया व इस तकनीक को तथा बीज को देश के चारों तरफ फैलाने के लिए कहा। गुणवत्ता में श्रेष्ठता को महत्व दिया तथा कुछ दिन बाद राजस्थान सरकार के विज्ञान एवं तकनीकि विभाग द्वारा प्रशस्ति पत्र व रू. 11,000/- नकद दिये तथा उन्होंने मेरे खेत में केंचुओं का निरीक्षण किया। निरीक्षण करने पर प्रति स्क्वायर फिट 45 केंचुए मिले, जो अलग-अलग प्रजातियों के थे। मिट्टी व पत्ते खाकर गोलियाँ बनाकर खाद निकालते, वो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए कारगर थे। मैंने किसी प्रकार के फर्टीलाइजर, रासायनिक खाद या कीटनाशक दवा का प्रयोग नहीं किया, इसलिए इतनी बड़ी संख्या में केंचुए जीवित मिले। जिन्होंने इनका प्रयोग किया वहाँ केंचुए मिले ही नहीं। उसके बाद मेरे कुंए पर निर्मित कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, जिप्सो कम्पोस्ट आदि के गड्डे देखे तथा अन्य किसानों को भी हमारे यहाँ भेजकर, हमारे द्वारा किये गये काम को देखकर, प्रसार प्रसार करवाया। वैसे तो मैं 1988 से दूरदर्शन व आकाशवाणी के द्वारा किसानों को जैविक खेती, खाद तैयार करना, केंचुए पालना, बीज तैयार करना आदि के बारे में कार्यक्रम देता रहा। उसके बाद विज्ञान व तकनीकि विभाग ने मेरा कार्यक्रम दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर नियमित करवा दिया तथा अपने विभाग से व कृषि विभाग से कई सीडी बनवाई जो मेलों में या अन्य किसी कृषि कार्यक्रम में किसानों को दिखाई जाती है।

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