करौंदा की खेती

फलों में करीदा का उपयोग प्राचीन समय से ही कर रहे हैं। इसका पेड़ होता है, जो बारह से पन्द्रह फिट तक उपर बढ़ता है। इसके पत्ते छोटे व गहरे चिकने होते हैं तथा टहनियों पर कांटे होते हैं। इसके उपर लगाने के चार-पाँच साल बाद फल आता है। फल से पूर्व सफेद रंग के फूल आते हैं जो फरवरी माह में आना शुरू होते हैं। जब फल बनना शुरू होता है तो आगे से फूल झड़ जाता है। इसके फल गुच्छों में लगते हैं। फलों का रंग गुलाबी व हरा रहता है। पकने पर गहरे | कविया कलर के हो जाते हैं तथा उनमें बीज पड़ जाते हैं। इसमें दूध की मात्रा ज्यादा होती है। यह सब्जी, आचार आदि के काम आता है। खट्टा ज्यादा रहने के कारण पक्षी परेशान नहीं करते। लाल होने पर इनका स्वाद खट्टा मीठा होता है, उस वक्त इसको जानवर खाते हैं। यह फल हृदय रोग, दाँतों के रोग-पाइरिया रोग होने पर इसको क्वाथ के रूप में दिया जाता है। यह अल्प मूत्र या रूक-रूक कर पेशाब आने पर तथा फोड़ों पर भी नींबू का रस मिलाकर लगाया जाता है जिससे फोड़ा ठीक हो जाता है। इसके फलों पर कीटों का प्रभाव कम होता है, केवल आगे की टहनियों में माथाबन्दी होती है, जिसके नियंत्रण के लिए रात भर घड़े में तम्बाकू भिगोकर, उसमें थोड़ा गुड़ डाल देते हैं, हिलाकर स्प्रे करते हैं, जिससे माथाबन्दी खत्म हो जाती है।

  1. भूमि का चयन :- करौंदा हर प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है। इसके लिए डेढ़ फिट गहरा व एक फुट चौड़ा गड्डा बनाया जाता है। उसमें उपर से 6 इंच की मिट्टी अलग रखें व नीचे वाली एक फिट मिट्टी की डोली बनायें। नीचे की मिट्टी के बराबर का गला खाद लेकर उपर वाली मिट्टी जो अलग रखी है, उसमें खाद मिलाकर गड्डे को भर दें तथा पौधा लगाने के लिए कुंडी के बराबर हाथ से खड्डा खोदकर कुंडी फिट कर दें व चारों तरफ से मिट्टी को दबाकर पानी दे दें। पथरीली भूमि में बढ़वार कम होती है। वहाँ चारों तरफ खाई बनाकर खाद और पानी देकर छोड़ दें जिससे बढ़वार बढ़ने लगेगी।
  2. तुड़ाई:- इस फल में दूध की मात्रा अधिक होने व बारीक फल होने से व टहनियों में कांटे होने पर तुड़ाई में किसान को समय ज्यादा लगता है। इसकी तुड़ाई से पहले हाथों में सरसों का तेल लगाकर तथा पेड़ के नीचे पुरानी साड़ी या कपड़ा बिछाकर फलों को डंडे की सहायता से झाड़े व पानी की आधी भरी हुई बाल्टी पास रखें। फलों को तुरंत पानी में डालकर धोयें जिससे दूध नहीं निकलेगा।
  3. उपयोग – यह हर प्रकार की सब्जी में बतौर खटाई डालने के व आचार के काम आता है। किसान के खेत के चारों तरफ लगाने से खेत में मवेशी नुकसान नहीं करते। यह बाड़ का काम करता है। इसके फल को तीन-चार दिन से ज्यादा नहीं रख सकते वर्ना इसके उपर सलवर्ट पड़ जाती है और यह खराब हो जाता है। पके हुए फलों का बीज बनाने के लिए इनको पानी में डालकर खूब रगड़कर छिलका बाहर निकाल लें, वीज पैदे में जमा हो जाता है। इसके बीज को राख में लपेट कर छाया में सुखा दें। बीज आगे काम आये तथा बेचने पर किसान को अच्छा मुनाफा होगा।

नमक नोसादर अफीम अर गुड़, गीलो जो होय।

तो निश्चय निश्चय जिरखा होवसी, सोच करो मत कोय ॥ ॥

नमक, नौसादर, अफीम और गुड़ में यदि हवा की नमी से गीलापन महसूस होवे तो यह निश्चित है कि वर्षा होगी।

आषाढ़ सुदी नवमी, न बादल न बीज।

हल फाड़ ईंधन करो, बैठ्या चोबो बीज ॥

आषाढ मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक भी बादल एवं बिजली नहीं दिखाई देते हैं तो हल को छोड़ कर हाथ से बीज को चोब (बिजाई) देना चाहिए।

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