फसल के रोगों के वानस्पतिक उपचार

  • तंबाकू – तने पर लगनेवाला कीड़ा, पत्ते खाने वाली इल्ली, तुडतुडे, मकडी। उपचार 1 किलो तंबाकू का कचरा, 10 लीटर पानी में उबालें, बाद में इसे तीस लीटर पानी में घोलकर – चिपकने के लिए साबुन का चूरा डालें और कपड़े में छानकर इसका स्पे करें।
  • धतूरा – तने को खोखला करने वाले कीटक, निमेटोड, खटमल, तांबेरा (गेरूवा) । धतूरे के डंठल एक किलो, 10 लीटर पानी, 20 मिलीलीटर केरोसीन, 50 ग्राम साबुन रात में एक साथ रखें। कपड़े से छानकर इसका छिड़काव करें।
  • एंडी, नॉर्मल टाईप में लार्वा, (छोटे जीवाणु) खटमल के लिए – एंडी की 750 ग्राम बीजों का चूर्ण करें, दो लीटर पानी में 10 मिनट उन्हें उबालें, उनमें तीन चम्मच राकेल (मिट्टी का तेल) मिलाकर कुनकुना होने पर तुरंत उसको स्प्रे करें।
  • सिटोनेला (तेल) – इसकी तीव्र बदबू के कारण तने में लगने वाले कीड़े, मच्छर जड़ों को सडाने वाले कीड़ों पर रोक लगती है। अनाज को भी सुरक्षित रखने के लिए इस तेल को अनाज के साथ मलकर उपयोग करें।
  • वाइटेक्टस निर्गुण्डी – पानी में इस पेड़ के पत्तों का रस मिलाकर स्प्रे करने से नाजुक त्वचावाले कीटाणुओं पर असर पड़ता है।
  • गेंदा- इसके डंठलों को ड्रम में पांच-दस दिन भिगोकर रखें। बीच-बीच में उसे हिलायें। साबुन के चूरे के घोल के साथ इसका स्प्रे करें। तुडतुड़े, मक्खी, मच्छर, रोटस, नेमेटोड का प्रतिबंध करता है। कपास की फसल के बीच हर एकड़ के पीछे सौ गेंदे के पेड़ बिखरे हुए लगाने से कपास की बीमारी की रोकथाम होती है।
  • चना, अरहर, कपास, करडई, सूर्यफूल, साग-सबजी पर पड़ने वाला लार्वा (छोटे जीवाणु) – आधा किलो लहसुन, छिलके निकालकर पाव किलो मिर्च हरी या सूखी को एक साथ पीस लें। इस मिश्रण की गेंद जैसी गोली बनाकर उसे पूरे रात के समय मिट्टी तेल में डुबाकर रखें। दूसरे दिन इस घोल को छाने, फिर 100 ग्राम पानी में साबुन का घोल तैयार करें और इन दोनों का मिश्रण करें और उसे 100 लीटर पानी में घोलकर उसका फसल पर सवेरे स्प्रे करें। कड़ी धूप में स्प्रे न किया जाय।
  • कड़वा नीम इसकी पत्ती, फूल, निंबोली, खली, अंतर खाल आदि से 175 प्रकार की मनुष्य, पशु और वनस्पति के रोगों पर दवाईयां बनाई गई हैं। इस कारण इसे विश्ववृक्ष की संज्ञा दी जाती है। भारत में हजारों टन निंबोली विदेशों में जा रही है और इसका पेटेंट विदेशी कंपनी ने लिया है।
  • कडुनीम के सभी अवयवों में ‘अजाडिरावरीन’ नाम का कीटनाशक द्रव्य होता है। इसका तेल अत्यंत कडवा होने से इसका स्प्रे करने से कीटक, फसलों के पत्ते नहीं खाते। कड़वे नीम की निंबोली की पवाडर बनाकर रख सकते है। उसके खली का उपयोग खाद और कीट रोकने के लिए किया जाता है। यह उपलब्ध न होने पर इसकी पत्ती पीसकर उसका रस पानी में मिलाकर सप्रे करते हैं। या र्निबोली की खली उबालकर भी छानकर उसमें पानी मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं।

मिर्च, टमाटर, बैगन पर भी इसका प्रयोग किया जाता है। अनाज में नीम की सूखी पत्ती डालकर या नीम का तेल लगाकर अनाज सुरक्षित रख सकते हैं।

  • सीताफल के बीज यह स्पर्शविष और अंतरप्रवाही विष दोनों से काम करता है। बीज तीन दिन पानी में रखें और उसे बाद में पीसकर उसका अर्क पानी में घोलकर स्प्रे करें।
  •  राख – 50 ग्राम महीन छनी हुई राख में 5 ग्राम चूना, पांच लीटर पानी में कुछ समय रखें। उसे कपड़े से छानकर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से ककड़ी, खीरा आदि के फलों को बचाया जा सकता है।

(क) 50 ग्राम महीन छनी हुई राख में 5 ग्राम चूना, पांच लीटर पानी में कुछ समय रखें। उसे कपड़े से छानकर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से ककड़ी, खीरा आदि के फलों को बचाया जा सकता है।

(ख) एक किलो छनी हुई महीन राख में 20-25 ग्राम मिट्टी तेल मिलाकर फसल पर डस्टर से उड़ाने से संतरों के रस का शोष करने वाले कीटक को रोक सकते हैं।

(ग) एक किलो राख 10 लीटर पानी में रात में भिगोयें। बाद में छानकर उसमें एक लीटर छाछ मिलाकर उसका स्प्रे करें। शुरू में दो-चार पौधों पर प्रयोग करके देखें। वे पौधे यदि नहीं मुरझाये तो सब पर स्प्रे करें। इससे भभूतिया या पौधों पर पड़ने वाले लाल चट्टों पर नियंत्रण होता है।

  • करंज-तुलसी करंज-तुलसी का अर्क स्प्रे करने पर फूलगोभी, मिर्च, टमाटर सड़ने – पर रोकथाम होती है और कपास, मिर्च पर आने वाले धब्बे, संतरा, मोसंबी, निंबु पर आनेवाली कंकर बीमारी पर असर होता है।
  • रूई (आक) धान की रोपाई के समय किये कीचड़ में आक की पत्ती मिलाने पर तने को खोखला बनानेवाले कीड़ों को रोका जा सकता है।

फोगा निपजै बाजरो, सांगर मोठ सवाय ।

वावल चवला, नीम तिल, गड़ा ज्वार कवाय ॥

अगर फोगा अर्थात टीलों में बाजरा पैदा होती है और सांगरे व मोठ भी सवाये होते हैं तो आगामी फसल में चावल, चौला, तिल, गन्ना, ज्वार भी सवाया होगा अर्थात ज्यादा पैदा होगा।

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