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धनिया की खेती

धनिया मसाले के रूप में काम में लिया जाता है। इसका बीज गहरा भूरे रंग का और काली मिर्च के बराबर होता है। उपर हल्की धारी व थोथा होता है। यह शीतोष्ण है, यह शरीर के तापमान को सही रखता है। हरा धनिया प्राय: खुशबू के लिए सब्जी में डाला जाता है तथा बटनी बनाकर भी काम में लिया जाता है। इसके फल को भी मसाले के रूप में हर सब्जी में काम में लिया जाता है।

  1. भूमि का चयन:- यह हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। बालू मिट्टी व क्षारीय मिट्टी में इसकी पैदावार कम होती है। जमीन में 100 क्विंटल प्रति हैक्टर सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर दो-तीन जुताई करें। इसके बाद पाटा फेर कर पलावा करें व दो-तीन दिन सूखने के बाद जोत लगाकर छोड़ दें।
  2. बीज की मात्रा :- इसका बीज 30 से 35 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से डाला जाता है। इसका बीज डालने से पूर्व दाने के दो-तीन टुकड़े करते हैं तथा जमीन में छिड़क कर बीज डालते हैं तथा उपर से हल्की जुताई व पाटा फेरते हैं व क्यारियाँ बना लेते हैं तथा 10-12 दिन बाद पानी देते हैं। पानी देने के 10-12 दिन बाद खरपतवार खुरपी की सहायता से निकाल लेते हैं व पानी देकर छोड़ देते हैं। उपर से जमीन एक-दो इंच सूखने पर जब पत्तियों की उंचाई 7-8 इंच हो जाये तो हांसिये की सहायता मे जमीन से एक इंच उपर पत्तियाँ काटकर पूली बनाकर मण्डी में बेचने के लिए भेजते हैं। तीन-चार फटाई करने के बाद इसमें कुन्दे निकलना शुरू होता है। जब कुन्दे दो-अढ़ाई फुट के बढ़ जाते है तो इनमें ब्रांचे फूटती हैं तथा उपर सफेद रंग के फूल आते हैं उस पानी देकर धनिये को छोड़ दिया जाता है, कटाई नहीं करते हैं। मार्च में इसके फूलों में दाने पड़ना शुरू हो जाता है। दाने पकने पर पौधा पीला हो जाता है, उस वक्त सरसों की तरह उपर से कटाई करके भारे बनाते हैं व दो-तीन दिन धूप में सुखाकर लकड़ी के डंडे की सहायता से झाड़ लेते हैं।

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