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अरहर की खेती

अरहर के मूल जन्म स्थान कुछ लोग भारत में व कुछ अफ्रीका मानते हैं। भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र में खेती की जाती है। पानी की कमी से राजस्थान में कम बोई जाती है।

  1. मिट्टी इसके लिए उपयुक्त काली दोमट मिट्टी होती है। बालू दोमट मिट्टी में भी इसकी पैदावार होती है।
  2. खाद अरहर की खेती में खाद की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए पहली फसल के अवशेष ही काफी होते हैं, फिर भी अगर गोबर की सड़ी हुई खाद डाली जाये तो इसकी पैदावार अच्छी होती है।
  3. सिंचाई अरहर की खेती में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। सर्दी में मावट न होने पर दिसम्बर और जनवरी में अगर सिंचाई कर दी जाये तो पाले से बचा जा सकता है क्योंकि यह फसल भारतीय किसानों के लिए जुआ है। जिस वर्ष सर्दी अधिक पड़ती है, उस वर्ष अरहर कम पैदा होती है। जिस वर्ष सर्दी या पानी का प्रभाव कम होता है, इसकी पैदावार अधिक होती है।
  4. बुवाई का समय बुवाई का समय जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में या वर्षा काल के प्रारम्भ में ही बोयी जाती है। इसको छिटका कर या पंक्तिबद्ध दोनों तरीकों से बोई जाती है। इनमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 4 फीट व पौधे से पौधे की दूरी एक फीट होनी चाहिए। बाजरा व अन्य फसलों के साथ बोई जाती है।
  5. बीज की मात्रा – अरहर अकेली बीज पर बीस किलो ग्राम प्रति हैक्टर के हिसाब से व बाजरा, मूंग, मोट आदि में मिलाने पर आठ से दस किलोग्राम प्रति हैक्टर के हिसाब से बोई जाती है।
  6. निराई गुड़ाई- इसमें निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है। बाजरा, मूंग, मोट आदि के साथ बोने पर निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है, जो पौधो की पैदावार में अच्छी साबित होती है।
  7. कटाई- इसका कटाई का समय मार्च का आखिरी सप्ताह व अप्रैल का पहला सप्ताह होता है।
  8. शेष अवशेष- इसके शेष अवशेष के पत्तों को खाद के रूप में व लकड़ी को जलाने के काम में लिया जाता है।
  9. उत्पादन  इसका उत्पादन 15 किंटल से 20 किंटल प्रति हैक्टर तक होता है। सिंचित उत्पादन शुष्क से अधिक होता है।
  10. बाजार भाव अरहर 2500 से 3500 रूपये प्रति किंटल के हिसाब से विकती है।
  11. निर्यात अरहर की दाल बनाई जाती है। हमारे देश की पूर्ति के बाद शेष दाल विदेशों में निर्यात की जाती है।

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